ईश्वर ….साकार या निराकार ??
इस दुनिया में कुछ भी सत्य नही है , ठीक ठीक किसी को पता नही । बस अवधारणा ही है । सब की अपनी अपनी । तर्क है अपने अपने।
इन्ही सबमे एक अवधारणा है तत्व की .. ऊर्जा की.. गॉड पार्टिकल की जिससे यह संसार बना..
किसी भी द्रव्य को मेटर को यदि तोड़ा जाय तो सबसे छोटी इकाई परमाणु की होगी इसके बाद सिर्फ ऊर्जा ही बचेगी। ऊर्जा ही तरंग है वही कण है क्वांटम सिद्धान्त यही कहता है। ऊर्जा तरंग में बदलती है जाल बुनती है फिर कण में बदल जाती है और एक आकार ले लेती है। जिससे द्रव्य या मेटर का जन्म होता है।
त्रिदेव की अवधारणा भी ऊर्जा के तीन कण से हुई है। जो भी महामानव हुए उन्होंने अपने ऊर्जा स्त्रोत्त को जाना इस्तेमाल किया।हम सभी मनुष्य भी ऊर्जा के ही द्वारा निर्मित है । और हमारे शरीर को चलाता है पुनर्निर्माण करता है
मस्तिष्क का वह भाग जिसे सेरेब्रेल्म या अवचेतन मन कहा जाता है। उस हिस्से ने अरबो न्यूरॉन होते है जो हमे सोचने, विचारने और कल्पना के उड़ान को सच में ब्लू प्रिंट में बदलने की क्षमता रखते है।
सारी दुनिया को ईश्वर ने खुद से बनाया ।जिसे हम गॉड पार्टिकल कहते है यह अभी अवधारणा ही है खोज जारी है । धरती के विनाश की सम्भावना को देखते हुए इसके परीक्षण को रोक दिया गया।
उसकी सबसे बड़ी देन है न्यूरॉन जो की जीव को उसके माहौल के हिसाब से खुद को बदलने की शक्ति देता है। न केवल खुद के शरीर को बल्कि वहाँ के वातावरण को भी कंट्रोल करने की शक्ति देता है। न्यूरॉन दो विकल्प देता है 1 होना दूसरा पाना ।
होना का अर्थ हुआ की उस व्यक्ति ने अपने अंदर वह क्षमता विकसित की। जैसे डॉलफिन ने सोनार विकसित की। चमगादड़ ने प्रतिध्वनि। वैसे ही मनुष्यो ने भी अपने अंदर वह शक्ति विकसित की । जैसे एक अँधा आदमी मुह से आवाज निकलता है टिक टिक और अपने आसपास के वातावरण को समझ लेता है इको लोकेशन कहते है।
दूसरा विकल्प पाना । कल्पना की उड़ान को चर्म सीमा तक ले जाकर किसी भी चीज को सामने सच होता हुआ देखने की क्षमता को विशन या दिव्य दृष्टि कहते है । जो की उसकी सोच का सोलुशन या हल अचेतन मन ब्लू प्रिंट के द्वारा देता है फिर उसे कागज पे उतारा जाता है। जब तक पूरी तरह से कागज प न उत्तर जाय तब तक ब्लू प्रिंट को पढ़ने और सही उतारने की कोशिश जारी रहती है। आज जितने भी अविष्कार हुए पहले अवचेतन मन में ब्लूप्रिंट हुए , फिर केनवास पर फिर ट्रॉयल एंड एरर मेथड से उसे सुधार किया गया।
अंत में इतना ही कहूँगा की ये मेरी कल्पना या अवचेतन मन की उड़ान है एक अवधारणा है।
की ईश्वर कोई इंसान नही तत्व है । ऊर्जा का श्रेष्ठतम रूप है। वह सदा अपने रचना के साथ वास करता है। उसे उसके ही प्रार्थना, सोच, कल्पना की उड़ान के अनुरूप बनाता है और उसे माहौल में जीने लायक बनाता है वह दो विकल्प देता है होना और पाना ताकि जीवन जीना आसान हो जाय। हमारा रचयिता सदा हमारे साथ है । परम् ईश्वर , परम आत्मा हमारे साथ है। अवचेतन मन मे ।।
अर्थात ईश्वर साकार भी निराकार भी । ड्यूवेल थियरी के अनुसार मास और ऊर्जा कभी भी आपस मे बदलते रहते है । देखने वाले पर निर्भर है की वह प्रकाश को wave के रूप मे देखता है या मास के रूप मे ((अनसरटेनिटि प्रिंसिपल)) ।।
डॉ. मदनमोहन पाठक धर्म ( शास्त्र विशेषज्ञ )