कुछ महान कार्य अवश्य करें
कर्म करने के अतिरिक्त हमारे पास अन्य कोई विकल्प नहीं है। कर्म अवश्य करें। कर्म करने या न करने का विकल्प मनुष्य के पास नहीं है। हमारे पास केवल यह विकल्प है कि हम प्रेम, समर्पण, त्याग और प्रसन्नता से शुभ कर्म का चयन करें और कर्म फल के लिए कोई दुराग्रह या चिन्ता भय न रखें। हमारे कर्म परमात्मा के ही कर्म है और इन कर्मों के फल पर भी परमात्मा का अधिकार है।
हम साहसपूर्वक बडे-बडे कार्य अपने हाथ में लेकर दृढता और लगन के साथ करेंगे। जो कार्य हमारे हाथ में आता है वह परमात्मा का दिया हुआ है। उस कार्य को हम उसी के लिये करेंगे, उसका फल उसी को अर्पित करेंगे। सफलता और असफलता सब उसी परमात्मा की होगी।
हमारा कर्म अपना मूल्य स्वयं बोलेगा। उसके लिये किसी बहाने की कोई जरूरत नहीं। कर्म के क्षेत्र में बहाना हमारी दुर्बलताओं का सूचक है। थकान के सुख और क्लान्ति की मौज में भी हम ईश्वर भक्ति से प्रेरित होकर कर्म करते रहेंगे, हमारे सभी कार्यों में वही अनुप्राणित हो रहा है। हमारे नित्य कर्मों के आनन्द में यही प्रस्फुरण दे रहा है।
हमारा कार्य किसी की निन्दा-स्तुति पर निर्भर नहीं है, हम किसी की बात न सुनेंगे, संसार चाहे हमारी सफलता की आलोचना करे हमारी आशाओं पर हँसे या हमारे आदर्शों का उपहास करे, हम तो नारायण में नारायण के लिये, नारायण का कार्य कर रहे हैं। हम उसी की आज्ञा का पालन कर रहे है। हम अपनी ओर से प्रेमपूर्वक शक्ति भर सुन्दरता से कार्य करेंगे।
हमें न कोई सफाई देनी है, न अपने कार्य की रिपोर्ट बनानी है और न उसका लेखा-जोखा तैयार करना है। हम जो कुछ हैं सो हैं। अपने काम की सफाई देने से कोई सफाई नहीं हो जाती। वह अपने नित्य प्रति के कार्य के ऊपर एक बोझ ही बनता है। काम करो। समर्पण भाव से काम करो। अवश्य करो।
इस प्रकार काम करते हुए हम अपने अन्दर एक स्वतंत्रता का भाव उत्पन्न करें। यह व्यवहार की व्यस्तता में और ध्यान के आसन पर हमारी सहायता करेगा। हम चाहे भीड़ के बीच हों या शान्त एकान्त में अकेले बैठे हों। स्वतंत्रता और अभय की यह भावना अन्दर से उठती रहे कि हम अपने कर्म और विचार से सीधे और पक्के हैं।
इस ज्ञान में स्थित हम सब कार्यकर्ताओं का एक संगठन तैयार होगा। उसका हर व्यक्ति ईश्वर भावना से पूर्ण और स्वच्छ आचरण में स्थित रहते हुए शुद्ध चरित्र की महानता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहेगा। इसकी परीक्षा भी हमारे अन्दर ही होगी। हम सब महानता का भाव लेकर जियें। हम अप्रतिम ऋषियों की संतान है। जो काम हम खुलकर नहीं कर सकते उसे छिपाकर भी न करें। हम अपना ही आदर सत्कार करना सीखें। फिर अन्य लोग भी स्वभावतः ऐसे लोगों का आदर-सत्कार करेंगे।
हम सब लोगों के अन्दर गहरे में छिपी यह इच्छा है कि कोई सुन्दर कार्य, कुछ महान कार्य, कुछ अद्वितीय कार्य करें जो सदा अमर रहें। यह हमारे हृदय में बैठे ईश्वर की पुकार है। यह हमारे व्यक्तित्व के निम्न स्तर से हमें किसी अकथनीय ऊँचाई पर ले जाकर अनाश्वर बनाना चाहता है। हमें ईश्वर की यह पुकार ध्यान से सुननी चाहिए। उसकी उपेक्षा करना उचित नहीं है।
यह भगवान के पांचजन्य की आवाज है। नारायण आवादृन करते हैं कि हम अपनी समस्त क्षमताओं और शक्तियों का प्रयोग करें और विजय के लिये निकल पडें। जीवन की ऐसी व्यापक दृष्टि उत्पन्न होने पर और ईश्वर भाव से भावित होने पर हम उसके आदेश का पालन करना सीखते हैं। और तभी हमारे अन्दर चमत्कारी शक्तियों का स्रोत प्रकट होता है उसके बाद हम अपने साधारण निवास स्थान से और नित्य प्रति के कार्यों से संतुष्ट नहीं रह सकते। हम कुछ न कुछ महान कार्य करने के लिए कटिबद्ध होकर बाहर निकल पडेगे।
तभी हमारी दृष्टि के सामने कोई महान लक्ष्य प्राप्त करने की सम्भावना प्रकट होगी और हम उसके प्रति समर्पित होने लगेंगे। हमें अपने अन्दर छिपा हुआ शक्तियों का खजाना दिखाई देने लगेगा।
हम अपनी इन अद्भुत शक्तियों को हृदय की मंजूषा से बाहर निकालें और अपने आस-पास के जगत में उपयोग में निवेशित करें। ईश्वर ने हमें इन शक्तियों का विशाल भण्डार दिया है और उन्हें सही रूप में प्रयोग करने की योग्यता भी दी है।
वस्तुतः यदि हम प्रयास करें तो इसी क्षण महान कार्य कर सकते हैं। हम अवश्य करें।
यदि हम करें तो सभी महान उपलब्धियां सम्भव हैं।
आइये हम आगे बढे, संकल्प करें और महान कार्य हाथ में ले। हम अपना चिन्तन महान बनायें, महान् कार्य करें, और महानतम् उपलब्धियां प्राप्त करें। अवश्य करें।
(स्वामी चिन्मयानन्द)