कैसे करें तुलसी का चयन ?
ब्रह्म वैवर्त पुराण में श्री भगवान तुलसी के प्रति कहते है – पूर्णिमा, अमावस्या , द्वादशी, सूर्यसंक्राति , मध्यकाल रात्रि दोनों संध्याए अशौच के समय रात में सोने के पश्चात उठकर, स्नान किए बिना,शरीर के किसी भाग में तेल लगाकर जो मनुष्य तुलसी दल चयन करता है वह मानो श्रीहरि के मस्तक का छेदन करता है ।
- –द्वादशी तिथि को तुलसी चयन कभी ना करे, क्योकि तुलसी भगवान कि प्रेयसी होने के कारण हरि के दिन -एकादशी को निर्जल व्रत करती है। अतः द्वादशी को शैथिल्य,दौबल्य के कारण तोडने पर तुलसी को कष्ट होता है।
न छिन्द्यात् तुलसीं विप्रद्वादश्यां वैष्णवः क्वचित्।
(हरिभक्तिविलास, 7/354, विष्णु-धर्मोत्तर पुराण)
अर्थात – हे ब्राह्मणों! एक वैष्णव द्वादशी के दिन कभी भी तुलसी पत्तों का चयन नहीं करता
भानुवारं विना दुर्वांतुलसीं द्वादशीं विना।
जिवितस्य अविनाशाय न विचिन्वित धर्मवित्॥ (हरिभक्तिविलास, 7/355, गरुड-पुराण)
अर्थात – शास्त्र का भली भाँति अध्ययन किया हुए व्यक्ति यदि अपनी आयु को कम नहीं करना चाहता हो तो उसे रविवार के दिन दुर्वा घास और द्वादशी के दिन तुलसी के पत्तों का चयन नहीं करना चाहिए ।
द्वादश्यां तुलसी पत्रंधात्री पत्रश्च कार्त्तिके।
लुनति स नरो गच्छेत्निरयं अति गर्हितम्॥ (हरिभक्तिविलास 7/356, पद्म-पुराण, कृष्ण और सत्यभामा के बीच का संवाद)
अर्थात – यदि कोई मनुष्य द्वादशी के दिन तुलसी-पत्तों का चयन करता है या कार्तिक महीने में आंवले के वृक्ष के पत्तों का चयन करता है तो उसे अत्यंत गर्हित नरक-लोक की प्राप्ति होकर दुःख का अनुभव करना पड़ता है ।
- –तुलसी चयन करके हाथ में रखकर पूजा के लिए नहीं ले जाना चाहिये शुद्ध पात्र में रखकर अथवा किसी पत्ते पर या टोकरी में रखकर ले जाना चाहिये ।
- तुलसी जी के पत्तो को तोडने से पहले हमें तुलसी जी का वंदन करना चाहिए।
- तुलसी जी के पत्तो को नाखूनों से कभी नही तोडना चाहिए, नाखूनों के तोडने से पाप लगता है।
- सांयकाल के बाद तुलसी जी को स्पर्श भी नही करना चाहिए।मान्यता है कि सांयकाल के बाद तुलसी जी भगवान कृष्ण के साथ लीला करने जाती है।
- रविवार को तुलसी पत्र नही तोड़ने चाहिए।
- एकादशी-द्वादशी के दिन तुलसी के पत्तो को नही तोडना चाहिए।
- तुलसी जी को केवल वृक्ष नहीं समझना चाहिए, तुलसी जी वृक्ष नही है, साक्षात् राधा जी का अवतार है।
- तुलसी के पत्तो को कभी चबाना नहीं चाहिए।निषिद्ध दिवसों में तुलसी चयन नहीं करना चाहिए,और बिना तुलसी के भगवत पूजा अपूर्ण मानी जाती है अतः वारह पुराण में इसकी व्यवस्था के रूप में निर्दिष्ट है कि निषिद्ध काल में स्वतः झडकर गिरे हुए तुलसी पत्रों से पूजन करे.और अपवाद स्वरुप शास्त्र का ऐसा निर्देश है कि शालग्राम कि नित्य पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी दल का चयन किया जा सकता है..
चेतना त्यागी ( सहसंपादक )