‘कोरोना’ जैसे महासंकट और साधना
-चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता- (सनातन संस्था)-
वर्तमान में कोरोना रूपी संकट से संपूर्ण विश्व ग्रस्त है । इस महामारी का प्रतिदिन हो रहा फैलाव और मृत्यु के बढते आकडों के कारण सर्वत्र भय का वातावरण है । कोरोना संसर्गजन्य रोग है अथवा मानवनिर्मित आपदा, यह अब तक स्पष्टरूप से समझ में नहीं आया है । कुछ देशों में वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इसे मानवनिर्मित आपदा ही समझ रहे हैं । मानव की सहायता के लिए उपयुक्त विज्ञान के आधार पर मानवसमूह को ही नष्ट करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है । इसका कारण है ‘मानव की तमोगुणी प्रवृत्ति’ ! कोई आपदा मानवनिर्मित हो अथवा प्राकृतिक, हमें उस आपदा के पीछे क्या दृष्टिकोण है और उस संदर्भ में हम शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर क्या तैयारी कर सकते हैं, यह समझकर ले रहे हैं । इस लेख के पूर्वार्ध में हमने आपदा का अर्थ क्या है, वर्तमानकाल की आपदाएं, आपदा वास्तव में क्यों आती है और उसके पीछे का आधारभूत कारण क्या है ? यह समझकर लिया है । उत्तरार्ध में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, वैश्विक आपदाएँ क्यों आती हैं, क्या आपदाओं को रोकना संभव है तथा आपदाओं की विविध स्तर पर किस प्रकार तैयारी करनी चाहिए आदी सूत्र देखेंगे ।
(पाठकों को सूचना: प्रस्तुत लेखमें कोरोना महामारी एवं अन्य आपातकालीन स्थिति का आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विचार किया है। कोरोना व्हायरस (कोविड-19) के फैलाव को रोकने के लिए सरकार और प्रशासन द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन पाठकों को करना चाहिए। इस लेख में दिए गए आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति का विचार पाठकों से हो ।)
3. आध्यात्मिक परिपेक्ष्य से क्यों आता है वैश्विक संकट ?
3 अ. आध्यात्मिक परिपेक्ष्यकी विशेषता ! : क्योंकि सृष्टि का संचालन किसी सरकार या आर्थिक महासत्ता द्वारा नहीं होता । सृष्टि का संचालन परमात्मा द्वारा होता है । इस संचालन का विज्ञान यदि हम नहीं समझेंगे, तो वैश्विक संकट को और उसके समाधान को कैसे समझ पाएंगे ? हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे धर्मग्रंथों में सृष्टि तथा उसके संचालन के विषय में स्थूल अध्ययन के साथ-साथ सूक्ष्म की भी स्पष्ट जानकारी दी गयी है । कौशिकपद्धति नामक ग्रंथ में आपातकाल के कारण का वर्णन है।
3 आ. उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, यह कालचक्र का नियम : युगपरिवर्तन, यह ईश्वरनिर्मित प्रकृति का एक नियम है । जो भी वस्तु उत्पन्न होती है, वह कुछ समय तक रहकर अंत में नष्ट हो जाती है । इस नियम के अनुसार अभी का समय कालचक्र में एक परिवर्तन का समय है । अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आपत्तियों से प्रकृति अपना संतुलन बना रही है । उसके अनेक मार्ग हैं, इसमें एक मार्ग है प्राकृतिक आपदाएं । इसमे सृष्टी कैसे कार्य करती है यह देखते है ! जिस तरह से धूल और धुएं बड़े पैमाने पर प्रदूषण का कारण बनते हैं, उसी प्रकार से पूरे समाज में फैला अधर्म और आध्यात्मिक उपासना (साधना) के आभाव के कारण मानव के साथ पर्यावरण में फैले रज-तम प्रदूषण को दूर करने के लिए पंचमहाभूतों के माध्यम से काम किया जाता है । भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएँ इन पंचमहाभूतों के माध्यम से बढ़ती हैं । पाँच महाभूतों में से, पृथ्वी तत्व प्रभावित होने पर भूकंप आता है । आप तत्त्व प्रभावित होने पर बाढ़ या अतिरिक्त बर्फबारी होती है।
3 इ. मनुष्य के कर्म तथा समष्टि प्रारब्ध ! : वर्तमान कलियुग में मनुष्य का 65 प्रतिशत जीवन प्रारब्ध के अनुसार और 35 प्रतिशत क्रियमाण कर्म के अनुसार होता है । 35 प्रतिशत क्रियमाण द्वारा हुए अच्छे-बुरे कर्मों का फल मनुष्य को प्रारब्ध (भाग्य) के रूप में भुगतना पडता है । वर्तमान में धर्मशिक्षा और धर्माचरण के अभाववश समाज के अधिकांश लोगों में स्वार्थ तथा तमोगुण की बढोतरी हुर्इ है । इस कारण समाज, राष्ट्र और धर्म की हानि हो रही है । यह गलत कर्म संपूर्ण समाज को भुगतने पडते हैं; क्योंकि समाज उसकी ओर अनदेखी करता है । इसी प्रकार, समष्टि के बुरे कर्मों का फल भी उसे प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सहना पडता है । जैसे आग में सूखे के साथ गीला भी जल जाता है, उसी प्रकार यह है । इसके साथ ही समाज, राष्ट्र और राष्ट्र का भी समष्टि प्रारब्ध होता है । 2013 से 2023 के कालखंड में मनुष्यजाति को कठिन समष्टि प्रारब्ध भुगतना पड सकता है ।
4. क्या आपातकाल रोकना संभव है ?
हमारी संस्कृति ही प्रकृति की पूजा करनेवाली थी। गोमाता, गंगानदी, बरगद, पीपल, गंगासागर, कैलाश पर्वत, मानसरोवर इस प्रकार हम वृक्ष से लेकर महासागर तक प्रकृति की पूजा करते थे । हमारी संस्कृति इस भूमि को पवित्र भारतमाता माननेवाली, पत्थर में भी भगवान देखकर उसे पूजनेवाली थी, परंतु विदेशी शिक्षापद्धति तथा कम्युनिस्ट विचारधारा के कारण हमने इसे निम्न दर्जे का मानना प्रारंभ किया । गौमाता को संभालने में हमें लाभ-हानि दिखाई देने लगी । धीरे धीरे हमने पश्चिम की ओर आकर्षित होकर अपने ऋषि-मुनियों और अपने पुरखों द्वारा संजोई आचरण पद्धति को ठुकरा दिया । विदेश में जो हो रहा है, वह अच्छा और हमारे प्रौढ व्यक्ति जो धर्म का ज्ञान देते हैं, वह पिछडा, यह मनोभाव भी हर भारतीय को संकेत दे रहा है, अब तो जाग जाओ । हमारे मनोभाव में केवल परिवर्तन ही नहीं हुआ, अपितु वह नीचे गिर गया है ।
· तुलसी की जगह मनीप्लांट ने ले ली ।
· गोमाता की जगह कुत्तों ने ले ली ।
· हमने हाथ जोडकर ‘नमस्ते’, ‘राम-राम’ कहना छोडकर ‘शेकहैंड’ करना प्रारंभ किया ।
· जन्मदिन पर आरती उतारना छोडकर, केक काटना और फूंक मारकर मोमबत्ती बुझाना प्रारंभ किया ।
· बाहर से घर में आते समय पैर धोना तो दूर की बात, जूते पहनकर हम घर में घूमने लगे ।
· क्या खाना है, कब खाना है, कैसे खाना है, इसका भी हमने ध्यान रखना छोड दिया ।
· जूठा अथवा प्राणियों द्वारा सूंघा भोजन न खाना, जन्म-मृत्यु के समय सूतक रखना, आदि सभी हमारे आचारधर्म की बाते हमने पिछडेपन के नाम पर ठुकरा दीं । मंदिर जाने में संकोच लगने लगा ।
· खेद है कि अज्ञानवश जिन बातों को हमने छोडा, उसको आज विदेश अपना रहा है ।
· ‘स्वाइन फ्ल्यू’ और अब ‘कोरोना’ के पश्चात पूरा विश्व ‘नमस्ते’ कर रहा है !
· डिस्कवरी चैनल यह शोध बता रहा है कि ‘बच्चा जब जन्मदिन पर केक पर रखी मोमबत्ती बुझाता है, तो उसके मुंह के जिवाणु जाकर केकपर गिरते हैं । ऐसा केक खाना सेहत के लिए गलत है ।’
· कोरोना न हो इस हेतु अब बाहर से आने पर लोग स्नान कर रहे हैं, बार बार हाथ-पैर धो रहे हैं । परंतु हम क्यों भूल गए हमारे यहां संध्या होती थी ।
· हमारे यहां बाहर से आने पर जूते निकालकर, हाथ-मूंह धोकर ही घर में प्रवेश होता था ।
हमारे धर्माचरण को स्वच्छता तक ही सीमित नहीं रखा था, स्वच्छता के साथ पवित्रता भी कैसे रहेगी, इतना गहरा चिंतन हमारा था । पर हमने सब छोड दिया और अब हम उसके परिणाम भुगत रहे हैं । अभी भी समय है, हमें हमारे धर्म, संस्कृति की ओर लौटना होगा और पूरे विश्व को राह दिखानी होगी कि प्रकृति को संतुलित होना है, तो पूरब की ओर हिन्दू धर्म की ओर लौट चलें ।
आपातकाल की तैयारी कैसी करनी चाहिए ?
1. आपातकाल की दृष्टि से भौतिक तैयारी
आपात्काल में चक्रवाती तूफान, भूकंप आदि के कारण बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है । पेट्रोल-डीजल आदि इंधन की किल्लत होने से यातायात की व्यवस्था भी रुक जाती है । उसके कारण रसोई गैस, खाने-पीने की वस्तुएं भी कई मास तक नहीं मिलतीं अथवा मिली, तो भी उनकी नियंत्रित आपूर्ति (रेशनिंग) की जाती है । आपात्काल में डॉक्टर, वैद्य, औषधियां, चिकित्सालय आदि की उपलब्धता होना लगभग असंभव होता है । यह सब ध्यान में लेते हुए आपात्काल का सामना करने हेतु सभी को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, आध्यात्मिक इत्यादि स्तरों पर पूर्व तैयारी करना आवश्यक है ।
सरकारी निर्देशों को ध्यान में रखते हुए आगे दिए सूत्रों का विचारपूर्वक पालन करें ।
1 अ. शारीरिक स्तर
1. भोजन के बिना भुखमरी से बचने के लिए, अगले कुछ महीनों या वर्षों के लिए पर्याप्त खाद्यान्न इकट्टा करें ! पारंपरिक वस्तुओं के लिए खाना पकाने के बर्तन (जैसे मिक्सर) का उपयोग कम से कम करें, उदा. अब से सिलबट्टा का उपयोग करने की आदत डालें । खाद्यान्न की खेती, कंद की खेती, गोपालन आदि पर ध्यान दिया जाना चाहिए ।
2. यदि घर के पास कोई कुआं नहीं है, तो पानी की कमी से बचने के लिए खुदाई करें। पानी के भंडारण के लिए बड़ी टंकियां लायी जानी चाहिए।
3. डॉक्टरों, चिकित्सकों, अस्पतालों आदि की अनुपलब्धता को देखते हुए, अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज के लिए दवाओं का सहारा न लेकर अब से बिना-औषध उपचार शुरू किया जाना चाहिए। साथ ही औषधीय पौधे भी लगाए जाने चाहिए। विकार होने पर दवा लेने की अपेक्षा वह नहीं हो इस हेतु प्रयास करना चाहिए, और शरीर को प्रतिकूल परिस्थितियों में सक्षम रहने के लिए, नियमित व्यायाम, प्राणायाम, योग अभी से करना चाहिए । केवल भूख लगने पर भोजन करना, अनावश्यक भोजन न करना आदि प्रयास करने चाहिए । अभी से विकार दूर कर स्वयं की रोग प्रतिकारक्षमता बढ़ा सकते हैं । परिवार के कम से कम एक सदस्य को प्राथमिक उपचार का प्रशिक्षण लेना चाहिए ताकि जख्म होना, जलन, बेहोशी आदि की स्थिती में रोगी पर अस्थायी उपचार किया जा सके !
1 आ. मानसिक स्तर : यदि आप दंगों, भूकंप, विश्व युद्धों आदि के दौरान उत्पन्न होने वाली स्थिति का सामना करने से डरते हैं, तो आपको प्रासंगिक घटनाओं का अभ्यास करने के लिए स्वयंसूचना देनी चाहिए ! रिश्तेदारों के साथ भावनात्मक रूप से न अटकने के लिए स्वयंसूचना दें ! यदि आपको किसी आपातकालीन स्थिति में कुछ करना संभव नही है, तो आपको एक तत्त्वज्ञान या साक्षीभाव से कठिन स्थिति को देखना चाहिए और स्वयंसूचना देनी चाहिए ताकि स्थिति को आनंद से स्वीकार किया जा
सके ! थोड़े समय के लिए परिवार के वियोग सहने के लिए तैयार रहें !
1 इ. वित्तीय स्तर : अपनी वर्तमान आय और बचत का कम से कम उपयोग करें ! वर्तमान में, कई बैंकों के वित्तीय घोटाले सामने आएं हैं । इसलिए, अपने स्वयं के धन को सुरक्षित रखने के लिए, किसी को एक ही स्थान पर निवेश करने की अपेक्षा सुरक्षा के संदर्भ में विभिन्न स्थानों पर निवेश करना चाहिए ।
1 ई. आपातकालीन तैयारी : घर पर अनावश्यक वस्तुओं को कम करना चाहिए ! दो अलग-अलग मोबाइल कंपनी के सिम कार्ड वाले मोबाइल फोन को पास में रखना चाहिए ! रिश्तेदारों, पड़ोसियों, पुलिस स्टेशन, फायर ब्रिगेड आदि के टेलीफोन नंबर, पते आदि को भी एक अलग डायरी में लिखकर रखे !
2. आपातकाल की दृष्टी से आध्यात्मिक स्तर पर क्या व्यवस्था की जानी चाहिए ?
आगामी काल में आनेवाली भीषण आपत्तियों से रक्षा होने के लिए अच्छी साधना करना और भगवान का भक्त बनना आवश्यक है । इसके लिए अभी से प्रयत्न आरंभ करें । हम पर देवता की कृपादृष्टि होने के लिए और अपने सर्वओर सुरक्षा-कवच बनने के लिए आगे बताई बातें प्रतिदिन करें । देवपूजा करें । सायंकाल देवता और तुलसी के पास दीया जलाकर उसे नमस्कार करें । संध्या काल में दीया जलाने के पश्चात घर के सब लोग आराम से बैठकर स्वास्थ्य और सुरक्षा-कवच प्रदान करनेवाले श्लोक / स्तोत्र पाठ (उदा. रामरक्षास्तोत्र, मारुतिस्तोत्र, हनुमान चालीसा, देवीकवच आदि) करें । रातमें सोते समय बिछौने के चारों ओर देवताओं के नामजप की सात्त्विक पट्टियों का मंडल बनाएं और सुरक्षा के लिए उपास्यदेवता से प्रार्थना करें ! आगामी तीसरे विश्वयुद्ध के समय छोडे जानेवाले परमाण्विक अस्त्रों के विकिरणों का वातावरण पर जो प्राणघातक प्रभाव पडेगा, उससे बचने के लिए प्रतिदिन अग्निहोत्र करें । (उत्तरार्ध)