कौन है दान का वास्तविक पात्र
दान का पात्र, निष्फल दान , उत्तम -मध्यम -अधम दान , धर्मराज -भगीरथ -संवाद , ब्राह्यण को जीविका दान का माहात्म्य तथा तडाग -निर्माणजनित पुण्य के विषय में राजा वीरभद्रकी कथा
नारदजी बोले – भाईजी ! मुझे गंगा -माहात्म्य सुननेकी इच्छा थी , सो तो सुन ली। वह सब पापोंका नाश करनेवाला है। अब मुझे दान एवं दान के पात्र का लक्षण बताइये। श्रीसनक जी ने कहा – देवर्षे ! ब्राह्यण सभी वर्णोंका श्रेष्ठ गुरु है। जो दिये हुए दानको अक्षय बनाना चाहता हो , उसे ब्राह्यण को ही दान देना चाहिये।
सदाचारी ब्राह्यण निर्भय होकर सबसे दान ले सकता है , किंतु क्षत्रिय और वैश्य कभी किसी से दान ग्रहण न करें। जो ब्राह्यण क्रोधी , पुत्रहीन , दम्भाचार -परायण तथा अपने कर्म का त्याग करने वाला है , उसको दिया हुआ दान निष्फल हो जाता है। जो परायी स्त्री में आसक्त , पराये धनका लोभी तथा नक्षत्रसूचक ( ज्योतिषी ) है , उसे दिया हुआ दान भी निष्फल होता है। जिसके मनमें दूसरोंके दोष देखने का दुर्गुण भरा है , जो कृतघ्र , कपटी और यज्ञके अनधिकारियों से यज्ञ करानेवाला है , उसको दिया हुआ दान भी निष्फल होता है। जो सदा माँगने में ही लगा रहता है , जो हिंसक , दुष्ट और रसका विक्रय करने वाला है , उसे दिया हुआ दान भी निष्फल होता है।
ब्रह्यन् ! जो वेद , स्मृति तथा धर्म का विक्रय करने वाला है , उसको दिया हुआ दान भी निष्फल होता है।जो गीत गाकर जीविका चलाता है , जिसकी स्त्री व्यभिचारिणी है तथा जो दूसरोंको कष्ट देनेवाला है , उसको दिया हुआ दान भी निष्फल होता है। जो तलवार से जीविका चलाता है , जो स्याही से जीवन -निर्वाह करता है , जो जीविका के लिये देवता की पूजा स्वीकार करता है , जो जीविकाके लिये देवता की पूजा स्वीकार करता है , जो समूचे गाँव का पुरोहित है तथा जो धावन का काम करता है , ऐसे लोगों को दिया हुआ दान निष्फल होता है।जो दूसरोंके लिये रसोई बनाने को काम करता है , जो कविता द्वारा लोगों की झूठी प्रशंसा किया करता है , जो वैद्य एवं अभक्ष्य वस्तुओं का भक्षण करने वाला है , उसको दिया हुआ दान भी निष्फल होता है।
जो भगवान् विष्णु के नाम -जपको बेचता है , संध्याकर्म को त्यागने वाला है तथा दूषित दान -ग्रहण से दग्ध हो चुका है , उसे दिया हुआ दान भी निष्फल होता है। जो दिनमें सोता , दिन में मैथुन करता और संध्याकाल में खाता है , उसे दिया हुआ दान भी निष्फल होता है। जो महापातकों से युक्त है , जिसे जाति -भाइयों ने समाजसे बाहर कर दिया है तथा जो कुण्ड ( पतिके रह्ते हुए भी व्यभिचारसे उत्पन्न हुआ ) और गोलक (पतिके मर जानेपर व्यभिचारसे पैदा हुआ ) है , उसे दिया हुआ दान भी निष्फल होता है। जो परिवित्ति ( छोटे भाई के विवाहित हो जानेपर भी स्वयं अविवाहित ), शठ , परिवेत्ता ( बड़े भाईके अविवाहित रहते हुए स्वयं विवाह करनेवाला ), स्त्री के वश में रहने वाला और अत्यन्त दुष्ट है , उसको दिया हुआ दान भी निष्फल होता है।
जो शराबी , मांसखोर , स्त्रीलम्पट , अत्यन्त लोभी , चोर और चुगली खाने वाला है , उसको दिया हुआ दान भी निष्फल होता है। द्विजश्रेष्ठ ! जो कोई भी पाप परायण और सज्जन पुरुषों द्वारा सदा निन्दित हों , उनसे न तो दान लेना चाहिये और न दान देना ही चाहिये। नारदजी ! जो ब्राह्यन सत्कर्म में लगा हुआ हो , उसे यत्नपूर्वक दान देना चाहिये। जो दान श्रद्धपूर्वक तथा भगवान् विष्णु के समर्पण पूर्वक दिया गया हो एवं जो उत्तम पात्र के याचना करने पर दिया गया हो , वहा दान अत्यन्त उत्तम है। नारदजी ! इहलोक या परलोक के लाभ का उद्देश्य रखकर जो सुपात्र को दान दिया जाता है , वह सकाम दान मध्यम माना गया है। जो दम्भ से , दूसरों की हिंसा के लिये , अविधि पूर्वक , क्रोध से , अश्रद्धा से और अपात्र को दिया जाता है , वह दान अधम माना गया है। राजा बलि को संतुष्ट करने के लिये यानी अपवित्र भाव से तथा अपात्र को किया हुआ दान अधम , स्वार्थ -सिद्धि के लिये किया हुआ दान मध्यम तथा भगवान् की प्रसन्नता के लिये किया हुआ दान उत्तम है –यह वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ ज्ञानी पुरुष कहते हैं। दान , भोग और नाश -ये धनकी तीन प्रकार की गतियाँ हैं।
जो न दान करता है और न उपभोग में लाता है , उसका धन केवल उसके नाश का कारण होता है। ब्रह्यन् ! धनका फल है धर्म और धर्म वही है जो भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाला है। क्या वृक्ष जीवन धारण नहीं करते ? वे भी इस जगत्में दूसरों के हित के लिये जीते हैं। विप्रवर नारद ! जहाँ वृक्ष भी अपनी जड़ों और फलों के द्वारा दूसरों का हित -साधन करते हैं , वहाँ यदि मनुष्य परोपकारी न हों तो वे मरे हुए के ही समान हैं। जो मरणशील मानव शरीर से , धन से अथवा मन और वाणी से भी दुसरोंका उपकार नहीं करते , उन्हें महान् पाणी समझना चाहिये।
डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी ( प्रबंध सम्पादक )