क्या हैं भारतीय जीवन मूल्य
प्रायः मैंने लोगो को भारतीय जीवन मूल्य (Values) के बारे मे बोलते हुए सुना है | हम अक्सर अपने आप को हमारे जीवन मूल्यों (Values) के आधार पर पाश्चात्य सभ्यता से अलग और उच्च कोटि का मानते है| आपने प्रायः लोगो को यह कहते हुए सुना होगा कि जो हमारे पास वेल्यूज़ है वो किसी और देश जैसे अमेरिका या यूरोप मे किसी के पास नहीं है | परन्तु जब भी मैंने हमारी इन तथाकथित वेल्युज को जानना चाहा या यूँ कहें कि ये वेल्यूज़ कौन – कौन सी है, तो उत्तर मे मुझे २ – ४ ही सुनने को मिलती है | जैसे- हमारे यहाँ परिवार व्यवस्था है , अतिथि का सम्मान, बड़ो का आदर आदि |
मुझे लगा कि क्या बस इन कुछ जीवन मूल्यों के आधार पर ही हम और देशो से अलग और महान है?
आज मैं इस लेख के आधार पर आप को भारतीय जीवन मूल्यों से परिचित कराने का लघु प्रयास कर रहा हूँ|
मानव को सच्चे अर्थो मे मानव बनाने का श्रेय उन उदात्त जीवन मूल्यों को है , जिनके माध्यम से वह अपना सात्विक जीवन बिता रहा है | वस्तुतः किसी भी राष्ट्र का मूल्यांकन वहाँ के जन समाज के आचरणगत मूल्यों के आधार पर ही होता है | प्रत्येक राष्ट्र की एक परंपरागत संस्कृति होती है , जिसका सृजन उन मूल्यों के आधार पर होता है जिन्हें वहाँ के महापुरुषों ने अपने जीवन मे अपनाया | वस्तुतः उन मूल्यों के और उनके माध्यम से ही उनका चरित्र एवं व्यक्तित्व गौरवमय बनकर स्वर्णाक्षरो मे अंकित हुआ |
किसी भी देश की भौतिक प्रगति का भी महत्व है लेकिन भौतिक प्रगति को उस देश का शरीर कहा जा सकता है , जबकि उसमे प्राण तत्व का संचार करने वाले जीवन – मूल्य ही है | इससे किसी भी व्यक्ति , जाति , समाज , देश व राष्ट्र के जीवन- मूल्यों का महत्व स्पष्ट हो जाता है |
किसी भी समाज की धारणाएँ, मान्यतायें, आदर्श और उच्चतर आकांक्षाएँ ही वहाँ के जीवन मूल्यों का सृजन करती है और यह देश , काल एवं परिस्थिति सापेक्ष होती है | यद्यपि इन जीवन मूल्यों की आधार भूमि मे प्रायः परिवर्तन नहीं होता , परन्तु उनके व्यवहृत रूप मे परिस्थिति-जन्य परिवर्तन होता रहता है |
भारतीय जीवन मे नारी के शील की रक्षा का सदा से विशेष महत्व रहा है | मध्य युग मे सशक्त विदेशी आक्रमणकारियों की ज्यादतियों से जब यहाँ के अशक्त राजा और जन- समाज उनकी रक्षा न कर सके, तो न केवल सामूहिक जौहर को प्रश्रय मिला अपितु संभवतः सती- प्रथा का प्रचलन भी तभी हुआ | भारतीय नारी ने विदेशी पाशविक – शक्ति का शिकार होने की अपेक्षा प्राणों की बलि दे देने को श्रेयस्कर समझा | उन परिस्थितियों मे यही यहाँ का जीवन – मूल्य था , लेकिन बदलते परिवेश मे आज इसकी आवश्यकता नहीं , अतः वही सती प्रथा जो उस युग मे गौरव का कारण बनी थी , आज निंदनीय और अवांछनीय हो गयी | मूलाधार वही रहा नारी के शील की रक्षा |
आज भी मदोन्मत मानव की राक्षसी वृत्तियों का शिकार होने से बचने के लिए प्राणों की आहुति देने वाली नारियों को यहाँ सम्मान कि दृष्टी से देखा जाता है – यह क्या कम है ? जीवन के उच्चतर मूल्य ही वह आदर्श बने रहते है , जिनके लिए मानव न केवल अनंत कष्ट सहकर जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार हो जाता है , अपितु समय आने पर प्राण तक न्योछावर कर देता है लेकिन अपने मूल्य नहीं छोड़ता | पितृ भक्त राम सहर्ष राज्य त्यागकर १४ वर्षों के लिए वन को चले गए और ” प्राण जाहि पर वाचन ना जाई” का पालन करते हुए दशरथ पुत्र वियोग मे स्वर्ग सिधार गए, पर अपने वचन का पालन करने मे नहीं चूके |
महाराणा प्रताप वन- वन मारे फिरते रहे, बच्चे को घांस की रोटी तक खिलाई लेकिन न स्वाभिमान का त्याग किया और न ही पराधीनता स्वीकार की | नौ वर्ष के गुरु गोविन्द सिंह ने धर्म की रक्षा के लिए पिता तेग बहादुर को ही श्रेष्ठ मानव बताते हुए धर्म की बलिदेवी पर चढने के लिए प्रेरित किया | इतना ही नहीं ” स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः” (धर्म परिवर्तन करने से अपने धर्म मे मर जाना अच्छा है -गीता) इस जीवन मूल्य से अभिसिंचित होने के कारण उनके सात और नौ वर्ष के पुत्रो ने भी अपने को दीवार मे जिन्दा ही चिनवा लेना अच्छा समझा लेकिन धर्म परिवर्तन से मनाही कर दी | स्वतः गुरु गोविन्द सिंह दूसरे दोनों पुत्रो के युद्ध मे शहीद हो जाने के बाद भी जीवन भर अत्याचारी औरंगजेब और उसके सेनापतियों से जूझते रहे लेकिन धर्म , जाति और देश की पराजय स्वीकार नहीं की | भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को कौन भुला सकता है , जिन्हीने देश की स्वतंत्रता के लिए हँसते – हँसते फांसी के तख्ते चूम लिए और उफ़ तक न की | ये है इन देशभक्तों के मूल्य – स्वाभिमान , स्वतंत्रता – प्रेम , धर्म- रक्षा और देश – प्रेम जिन्होंने इन मूल्यों के लिए बड़े से बड़ा त्याग किया और भारत ही क्या , विश्व के इतिहास मे अमर हो गए |
डॉ. मदनमोहन पाठक (धर्म शास्त्र विशेषज्ञ )