चण्डी पाठ के ३ बीजमन्त्र
श्रीअरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)-(१) ऐं सरस्वती का बीज मन्त्र है। ऐं आश्चर्य तथा जिज्ञासा के लिए कहा जाता है जिससे ज्ञान का आरम्भ होता है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा से वेदान्त दर्शन आरम्भ होता है। राजकुमार सुदर्शन के मुंह से ऐं निकला तो सरस्वती ने उसकी रक्षा की थी। उसके नाना ध्रुवसन्धि ने उसे बालक समझ कर राज्य हड़पने के लिए आक्रमण किया था (देवी भागवत पुराण)। दुर्वासा के त्रिपुरा महिम्न स्तोत्र (३) के अनुसार तीन वेदों के प्रथम अक्षरों के योग से ऐं बना है।
ऋक् — अग्निं ईळे पुरोहितम् — अ
यजुर्वेद-ईषे त्वा ऊर्ज्जे त्वा वायवस्थः—ई
सामवेद-अग्न आयाहि वीतये — अ
अ + (अ + ई) = अ + ए = ऐ।
(२) ह्रीं हृदय का संक्षिप्त रूप है। सभी भूतों के हृदय में रह कर ईश्वर उनको चलाता है।
ईश्वरः सर्व भूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन् सर्व भूतानि यन्त्रारूढानि मायया॥
(गीता, १८/६१) मायायन्त्र = रोबोट
उमा दारु जोषित की नाईं, सबहिं नचावत राम गोसाईं।
(रामचरितमानस, बालकाण्ड)
जितनी मशीन या जीव हैं उनका संचालन हृदय से हो रहा है। बृहदारण्यकोपनिषद् (५/३/१) के अनुसार हृ = आहरण, लेना। द = देना। य = यम (नियमन)
रक्त संचार का केन्द्र हृदय है-रक्त लेता तथा देता है, हृदय गति के चक्र में चलता है।
मस्तिष्क भी हृदय है, ज्ञानेन्द्रिय से ज्ञान लेता है, कर्मेन्द्रिय को देता है, नाड़ी गति से चलता है।
कार का हृदय उसका इंजन या कारबुरेटर है, कम्प्यूटर का हृदय CPU है।
सभी हृदयों का सम्मिलित रूप महालक्ष्मी है, जिसमें विष्णु रूप से विश्व चल रहा है।
(३) क्लीं-कृष्ण का बीजमन्त्र क्रीं (अरबी में करीम-उसमेँ संयुक्त अक्षर नहीँ होते। इसके आकर्षण से लोक स्थित हैं-
आकृष्णेन रजसा वर्तमानः निवेशयन् अमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
(ऋक्, १/३५/२,वाज.यजु,३३/४३, ३४/३१, तैत्तिरीय सं. ३/४/११/२, मैत्रायणी सं, ४/१२/६)
यहां केन्द्र में कृष्ण (अदृश्य, आकर्षक, काला) द्वारा रजः (लोक, विश्व) स्थित है। इसमें अमृत (विष्णु पुराण, २/७/१९ का अकृतक,अधिक स्थायी) तथा मर्त्य (कृतक-भू,भुवः,स्वःलोक)-.दोनों स्थित हैं। इनको प्रकाशित रथ (सौरमण्डल, जिसमें ब्रह्माण्ड से अधिक प्रकाश है) पर सूर्य चलते हुए दोनों प्रकार के भुवनों को देखता है।
क्रीं केन्द्र है, इसका प्रभाव क्षेत्र क्लीं (अरबी में कलीम) है, जो काली का रूप है।
स्त्री पुरुष विभाजन मनुष्य जन्म के आधार पर है। जन्म माता के गर्भ या क्षेत्र में होता है, पुरुष का बीज मात्र है। अतः विन्दु या पिण्ड पुरुष है, उसका क्षेत्र (आकाश) स्त्री है। दूध आदि को बर्तन से निकाल कर माप करते हैं। स्त्री के गर्भ से मनुष्य निकलता है। गर्भ द्वारा माप करने वाली माता है।