चीनी रोग और भारतीय विचार
विनय झा –
तीस मानव वर्षों तक चलने वाला वर्तमान दिव्यमास का आरम्भ १९९९ ईस्वी की मेष संक्रान्ति को हुआ । उसकी मेरू केन्द्रिक पृथ्वीचक्र में फिलहाल मृत्यु के अष्टम भाव का काल चल रहा है जो २०२२ के जनवरी तक है । सितम्बर २०२० में मृत्युभाव का मध्य है जब भावफल प्रबलतम रहेगा ।
मृत्यु के भावेश बृहस्पति मीनराशि में स्वगृही हैं,अर्थात् प्रबल । किन्तु अष्टम एवं एकादश का स्वामी होने के कारण प्रबलता अशुभत्व की है,अर्थात् अत्यधिक अशुभ । तृतीयेश होने के कारण अशुभ चन्द्र तथा नीच के बुध भी बृहस्पति के शत्रु होकर बृहस्पति के साथ हैं जिस कारण उनके केवल अशुभ फल ही बृहस्पति के फल में जुड़ रहे हैं । बृहस्पति के अतिशत्रु राहु तृतीय भावस्थ हैं जिनसे बृहस्पति का परस्पर अतिशत्रु दृष्टि सम्बन्ध भी है और चन्द्रमा की राशि में रहने के कारण राहु का सम्बन्ध और भी प्रबल है । अतिशत्रु होने के कारण राहु का शुभ फल बृहस्पति को नहीं मिल रहा है,केवल अशुभ फल ही मिल रहा है । इन ग्रहों का सम्मिलित फल है वायु वा श्वास,चर्म,जुकाम आदि एवं बुखार के लक्षणों के सम्मिलन द्वारा वैश्विक महामारी ।
सर्वतोभद्र चक्र में सबसे अधिक अशुभ वेध चीन पर है — बृहस्पति,चन्द्रमा और राहु के अलावा हानिभावस्थ सूर्य एवं शनि,तथा रोगेश शुक्र — कुल छ ग्रहों का अशुभ वेध । पाँच या अधिक ग्रहों का अशुभ वेध हो तो फल है मृत्यु ।
चन्द्रमा और बुध का प्रबल परस्पर शत्रु दृष्टि सम्बन्ध मङ्गल से है जो रोग भाव में हैं । केतु भी राहु के सम्बन्धी हैं और सप्तमेश होने के कारण मारक हैं । अतः सारे ग्रहों का सम्बन्ध महामारी के कारक उपरोक्त ग्रहों से है जिस कारण महामारी वैश्विक होगी । उपरोक्त दिव्यमास के त्रिंशांश चक्र में भी सारे ग्रह अशुभ हैं और लग्न मीन है जिसके स्वामी बृहस्पति भी अशुभ हैं ।
परन्तु १९३९ ई⋅ से आरम्भ होने वाले ३६० वर्षीय दिव्यवर्ष की कुण्डली में मृत्युभाव १५ सितम्बर २०१९ में ही समाप्त हो गया जिस कारण आजकल नवमेश चन्द्रमा चतुर्थ में बैठकर सामूहिक नरसंहार को रोक रहे हैं । जबतक दिव्यमास का काल है तबतक दिव्यमास और दिव्यवर्ष की कुण्डलियों के जिन ग्रहों के बल समान हैं उनके प्रभाव भी समान ही होंगे । दिव्यवर्ष में चन्द्रमा शुभ हैं किन्तु अशुभ बुध और अशुभ शुक्र के साथ रहने से बृहस्पति का शुभत्व नष्ट है तथा अशुभत्व का आधिक्य है एवं अन्य सारे ग्रह मारकेश,रोग और हानि के भावों में बैठे हैं जिस कारण दिव्यवर्ष भी कुल मिलाकर अत्यधिक अशुभ है,केवल चन्द्रमा शुभ है ।
अभी जो मेषारम्भ वर्ष चल रहा है वह १४ अप्रैल २०१९ को आरम्भ हुआ था । इसकी मेरु कुण्डली में चन्द्रमा तथा मङ्गल के सिवा सारे ग्रह महामारी के कारक हैं — बृहस्पति,शनि और केतु रोगभावस्थ;राहु हानिभावस्थ;शुक्र मृत्युभावस्थ;सूर्य मारकेश;और बुध अशुभ एवं नीच । चन्द्रमा पर भी शनि का प्रबल अतिशत्रु प्रभाव है ।
१३ अप्रैल २०२० से आरम्भ होने वाले मेषारम्भ वर्ष की मेरु कुण्डली का फल अधिक अशुभ है,केवल शनि शुभ हैं किन्तु वे भी प्रबल मारक मङ्गल से युक्त हैं । चन्द्रमा,बृहस्पति और केतु तीसरे भाव में अशुभ हैं — तीसरे में ये अशुभ फल तो देते ही हैं,चन्द्रमा को केन्द्रश होने का प्रबल दोष है तथा बृहस्पति ३ एवं ६ के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं और नीच भी हैं । सूर्य और बुध रोगभावस्थ;तथा शुक्र मृत्युभावस्थ हैं । बृहस्पति और मङ्गल की प्रबल शत्रुदृष्टि के कारण शुक्र का अशुभत्व बढ़ा और शुभत्व घटा । रोगभावस्थ एवं प्रबल मारक ग्रहों का सर्वाधिक वेध चीन पर है ।
अतः दिव्यमास और मेषारम्भ वर्ष का सम्मिलित फल १३ अप्रैल २०२० से आरम्भ होने वाले मेषारम्भ वर्ष में और भी अशुभ होगा । ज्यातिषीय जाँच सिद्ध करती है कि अमरीकी राष्ट्रपति ने सत्य कहा है कि यह “चीनी वायरस” है ।
उपरोक्त जिन ग्रहों का दुष्प्रभाव अधिक है उनकी शान्ति से लाभ होगा । भारतीय ज्योतिष द्वारा उपचार की बात वैश्विक स्तर पर तो सुनी ही नहीं जायगी,किन्तु भारत सरकार भी नेहरू के म्लेच्छमूल वाले राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग को ही मानती है जिसके अनुसार सरकारी वर्ष कुण्डली २२ मार्च को आरम्भ माना जाता है — यही कारण है कि उस दिन प्रधानसेवक ने जनता कर्फ्यू की बात कही । उससे केवल एक दिन ही लाभ मिलेगा । चैत्र वर्षारम्भ एवं मेषारम्भ के दिन अनुष्ठान अथवा जप आदि का लाभ पूरे वर्ष मिलेगा ।
WHO का दस दिन पुराना एक चित्र संलग्न है,इसके बाद का चित्र WHO ने जारी नहीं किया है जिससे स्पष्ट है कि WHO में कितने परिश्रमी और निष्ठावान लोग कार्यरत हैं जो केवल बहुर्राष्ट्रीय कम्पनियों से घूस मिलने पर ही हरकत में आते हैं — वायरस की तरह जो किसी जीव से सम्पर्क होने पर ही हरकत में आता है ।
(लेख लेखक के व्यक्तिगत विचारों पर आधारित है)