जानिए क्या है ज्वर-युद्ध (Biological warfare)
श्री अरुण उपाध्याय (धर्मज्ञ)- शोणितपुर के राजा बाणासुर ने भगवान् कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को बन्दी बनाया था। उसे छुड़ाने के लिए कृष्ण ने आक्रमण किया तो किसी प्रकार बाणासुर प्राण बचा कर भागा और भगवान् शिव से सहायता मांगी। शिव के गण भाग गये तो उन्होंने ३ सिर और ३ पैर वाला ज्वर छोड़ा। माहेश्वर ज्वर को शान्त करने के लिए भगवान् कृष्ण ने वैष्णव ज्वर छोड़ा तब माहेश्वर ज्वर रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा।
भागवत पुराण, स्कन्ध १०, अध्याय ६३-
विद्राविते भूतगणे ज्वरस्तु त्रिशिरास्त्रिपात्।
अभ्यधावत दाशार्हं दहन्निव दिशो दश॥२२॥
अथ नारायणो देवस्तं दृष्ट्वा व्यसृजज्ज्वरम्।
माहेश्वरो वैष्णवश्च युयुधाते ज्वरावुभौ॥२३॥
माहेश्वरः समाक्रन्दन् वैष्णवेन बलार्दितः।
अलब्ध्वा भयमन्यत्र भीतो माहेश्वरो ज्वरः॥२४॥
इसका अर्थ अधिकांश टीकाओं में यह किया है कि माहेश्वर ज्वर से ताप उत्पन्न होता है जिसे शान्त करने के लिए वैष्णव ज्वर ने शीत उत्पन्न किया। हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व, अध्याय १२२ मे भी इस कथा प्रसंग में माहेश्वर ज्वर का वर्णन है-
ज्वरस्त्रिपादस्त्रिशिराः षड्भुजो नवलोचनः॥७१॥
भस्मप्रहरणो रौद्रः कालान्तक यमोपमः।
नदन् मेघसहस्रेण तुल्यो निर्घात निस्वनः॥७२॥
निःश्वसन् जृम्भमाणश्च निद्रान्वित तनुर्भृशम्।
नेत्राभ्यामाकुलं वक्त्रं मुहुः कुर्वन् भ्रमन् मुहुः॥७३॥
संहृष्टरोमा ग्लानाक्षो भग्नचित्त इव श्वसन्।
अर्थात् माहेश्वर ज्वर के ३ सिर, ३ पैर, ६ भुजा, ९ आंख है, भस्म का प्रहार करता है, यम के समान कालान्तक है, हजार मेघ जैसा नाद करता है, वज्र जैसा विस्फोट करता है। वह हतोत्साह हो कर लम्बी लम्बी सांस खींचता है, जंभाई लेता है बेचैन हो कर घूमता है, व्याकुल मुख तथा नेत्र घूमते हैं।
उसके भस्म के आक्रमण से बलराम जी पर वैसा ही प्रभाव हुआ। उनका शरीर जलने लगा, नेत्र व्याकुल हो गये, रोमाञ्च हो गया, नेत्र आदिन्द्रियां गलने लगीं, रोमाञ्च हुआ और विक्षिप्त हो कर दीर्घ सांस लेने लगे।
शेषेण चापि जज्वाल भस्मना कृष्ण पूर्वजः।
निःश्वास जृम्भमाणश्च निद्रान्वित तनुर्भृशम्॥८०॥
नेत्रयोराकुलत्वं च मुहुः कुर्वन् भ्रमंस्तथा।
संहृष्टरोमा ग्लानाक्षः क्षिप्तचित्त इव श्वसन्॥८१॥
ये प्रभाव कोरोना वायरस (COVID-19) के ज्वर जैसे हैं। भगवान् कृष्ण के शरीर में आने से उनको भी थोड़ी देर के लिए ऐसा ही कष्ट हुआ पर योग बल से दूसरा ज्वर बनाया जिसने उसे शान्त कर दिया। यह संक्रमित व्यक्ति के रक्त नमूने का परीक्षण कर उसका टीका बनाने जैसा है। तब तक योग क्रिया से बचा जा सकता है।
उस समय शोणितपुर राज्य के अधीन चीन भी था, पता नहीं उसका वूहान प्रान्त था या नहीं।
दुर्गा सप्तशती में भी शुम्भ-निशुम्भ की सेना में रक्तबीज का वर्णन है जिसकी हर बून्द से नया रक्तबीज उत्पन्न होता था। ऐसा वायरस में ही हो सकता है। इसका उपाय भी यही कहा है कि रक्त को फैलने नहीं दिया, उसे चामुण्डा ने चाट लिया। पूरे क्षेत्र को बन्द कर ही उसका प्रसार रोकते हैं। दुर्गा सप्तशती, अध्याय ८-
कुलिशेनाहतस्याशु बहु सुस्राव शोणिअम्।
समुत्तस्थुस्ततो योधास्तद्रूपास्तत्पराक्रमाः॥४३॥
यावन्तः पतितास्तस्य शरीराद्रक्तबिन्दवः।
तावन्तः पुरुषा जातास्तद्वीर्यबलविक्रमाः॥४४॥
यतस्ततस्तद्वक्त्रेण चामुण्डा सम्प्रतिच्छति।
मुखे समुद्गता येऽस्या रक्तपातान् महासुराः॥५९॥