|| जानियें, आहुति के समय क्यों कहा जाता है – स्वाहा/स्वधा ||
जब हम किसी देवी-देवता का यज्ञ या हवन करतें हैं तो आहुति के समय स्वाहा अथवा स्वधा शब्द का उच्चारण करतें हैं । आइये जानें कि स्वाहा अथवा स्वधा कौन है और आहुति के समय इसका उच्चारण क्यों किया जाता है।
स्वाहा शब्द संस्कृत के ‘सु’ उपसर्ग तथा ‘आह्वे’ धातु से बना है । ‘सु’ उपसर्ग ‘अच्छा या सुन्दर या ठीक प्रकार से’ का बोध कराने के लिए शब्द या धातु के साथ जोड़ा जाता है और ‘आह्वे’ का अर्थ बुलाना होता है । अर्थात यज्ञ करते समय उद्देश्य तथा आदर पूर्वक किसी देवता को आमंत्रित कर उचित रीति से आहुति देने लिए स्वाहा शब्द का प्रयोग किया जाता है।
* शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी। उनमें से एक पुत्री का विवाह उन्होंने अग्नि देवता के साथ किया था। उनका नाम था स्वाहा। अग्नि अपनी पत्नी स्वाहा द्वारा ही भोजन ग्रहण करते है। इसलिये देवताओं को आहूति देने के लिए स्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता है।
* दक्ष ने अपनी एक अन्य पुत्री स्वाधा का विवाह पितरों के साथ किया था। अत: पितर अपनी पत्नी स्वधा द्वारा ही भोजन ग्रहण करतें हैं। इसलिये पितरों को आहूति देने के लिए स्वाहा के स्थान पर स्वधा शब्द का उच्चारण किया जाता है।
* श्रीमद्भागवत के अनुसार – ब्राह्मणों और क्षत्रियों के यज्ञों की हवि देवताओं तक नहीं पहुंचती थी, अत: वे सब ब्रह्मा के पास गये। ब्रह्मा उनके साथ श्री कृष्ण की शरण में पहुंचे। कृष्ण ने उन्हें प्रकृति की पूजा करने के लिए कहा। प्रकृति की कला ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। उन्होंने वर स्वरूप सदैव हवि प्राप्त करते रहने की इच्छा प्रकट की।
उसने देवताओं को हवि मिलने के लिए आश्वस्त किया। वह स्वयं कृष्ण की आराधिका थी। प्रकृति की उस कला से कृष्ण ने कहा कि वह अग्नि की पत्नी स्वाहा होगी। उसी के माध्यम से देवता तृप्त हो जायेंगे। अग्नि ने वहां उपस्थित होकर उसका पाणिग्रहण किया। स्वाहा के गर्भ से पावक, पवमान तथा शुचि नाम के पुत्र उत्पन्न हुये। इन तीनों से पैंतालीस प्रकार के अग्नि प्रकट हुये। वे ही पिता तथा पितामह सहित उनचास अग्नि कहलाते हैं ।
डॉ. सर्वेश्वर शर्मा
अतिथि व्याख्याता ज्योतिष विभाग
विक्रम विश्वविद्यालय ,उज्जैन ( म.प्र. )