जानियें, छठ-पूजा का -आध्यात्मिक विज्ञान
छठ या सूर्य-पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ-पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। पुराणों के अनुसार वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। महाभारत में सूर्य पूजा का एक और वर्णन मिलता है। इसके अनुसार पांडवों की पत्नी द्रोपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
छठपूजा मुख्यतः सूर्य उपासना से जुड़ा पर्व है, जिसे सनातन धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। सनातन धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है।
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।
भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है।
छठ-पर्व चार दिनों का है। भाई दूज के तीसरे दिनसे यह आरंभ होता है। पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दूकी सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है।
अगले दिनसे उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं।
तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं।
अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है। भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है, प्रत्येक महीने के शुक्ल-पक्ष की षष्ठी-तिथि को भगवान सूर्य को समर्पित यह व्रत करना चाहिए। कहते हैं सूर्य और षष्ठी माता से छठ-पर्व पर जो भी मनोकामना व्यक्त की जाती है वह एक वर्ष के अंदर-अंदर अवश्य पूरी होती है।
इस दिन क्या करें –
* इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है, जो जातक गंगा स्नान करने नहीं जा सकते वो घर पर ही नहाने के पानी में कुछ बूंदे गंगा जल डाल कर स्नान करें।
* सुबह सूर्य देव के उदय होते ही सूर्योपासना करें। ध्यान रखें जब तक सूर्य देव प्रत्यक्ष दिखाई न दें तब तक सूर्योपासना न करें।
* सूर्यों मंत्रों का जाप करें।
* पंचगव्य सेवन करें।
* दिन में एक बार नमक रहित भोजन खाएं।
* सूर्य देव को लाल रंग बहुत प्रिय है इसलिए उन्हें केसर, लाल चंदन, लाल पुष्प, लाल फल, गुलाल,लाल कपड़ा, लाल रंग की मिठाई आदि चढाते हैं।
छठ पूजा का विज्ञान से संबंध –
* छठ-पर्व कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला सनातन धर्म का पर्व है। छठ-पूजा के पीछे वैज्ञानिक आधार छिपा हुआ है। दसअसल षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय घटना है। इस समय सूर्य की पराबैगनीं किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। इसके कुप्रभावों से मानव की रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। इस पर्व के अनुसार सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा करता है।
* सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनीं किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे सबसे पहले अयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैगनीं किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है।
अत: सामान्य अवस्थामें मनुष्योंपर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य जीवन को लाभ ही होता है।
डॉ. सर्वेश्वर शर्मा ( उज्जैन )