जानिये धूमावती महाविद्या को
विश्व मे कठिनाई के,अड़चनों के, समस्याओं के, दुखो के, मूल याने रुद्र,यम,वरुण,निर्वृत्ति यह देवता हैं, अलग अलग प्रकार के रोग,दुख,उन्माद,यह रुद्र की वजह से !!!!!!!!!!
मूर्च्छा, मृत्यु,दुर्घटना इत्यादि इसी लिये!!!!!!!
गठिया,शूल,पक्षाघात,यह वरुण की वजह से!!!!,तो शोक कलह, दारिद्रय निरहुर्ति से होती रहती है……….
दरिद्रता यह सर्व दुख का मूल है, भोगो का मूल है, इसकी निवृत्ती हो,शांति हो इसलिए निर्वृत्ति के उपाय जान पड़ता हैं, यही शक्ति धूमावती है……..!!!!!!!!!!!!
इसका स्वरूप “विधवा” है,इसलिये,वो शिव रहित है…..
आषाढ़ शुक्ल!!११!!से कार्तिक शुक्ल!!११!!यह चातुर्मासिक काल है, इस काल मे पृथ्वी पिंड ,सोर-प्राण,जलमय होते रहते हैं, इसलिए आग्नेय ओर ऐन्द्र यह प्राण क्षीण होते रहते हैं, इस काल मे आसुर-प्राण प्रबल होते हैं, निरहुर्ति -रूपा धूमावती के प्राबल्य इसी काल मे होता हैं…..
अखिलेश्वरनन्दनाथ भैरव(ज्ञानेंद्रनाथ)