दीपावली में आतिशबाजी
अरुण उपाध्याय (धर्म शास्त्र विशेषज्ञ)
सनातन धर्म में पर्व परम्परा विश्व विदित है सबसे अधिक पर्व हमारे धर्म में ही मनाये जाते हैं और सभी पर्व अपनी एक विशेषता पर आधारित होते हैं यहाँ हमने इस लेख के द्वारा दीपाली पर्व पर आतिशबाजी के महत्व का वर्णन किया है जिसका वर्णन हमारे धार्मिक ग्रन्थों में है स्कन्द तथा पद्म पुराण में दीपावली उत्सव का वर्णन है। असुर राजा बलि इसी दिन पाताल गये थे, उस उपलक्ष्य में दीपावली का पालन होता है। सन्ध्या को स्त्रियों द्वारा लक्ष्मी पूजा के बाद दीप जलाते हैं तथा उल्का (आतिशबाजी) करनी चाहिये। उल्का तारा गणों के प्रकाश का प्रतीक है। आधी रात को जब लोग सो जायें तब जोर से शब्द होना चाहिये (पटाखा) जिससे अलक्ष्मी भाग जाये। विस्फोटक को बाण कहते थे और इनकी उपाधि ओड़िशा में बाणुआ तथा महाबाणुआ है। ओड़िशा के क्षत्रियों की उपाधि प्रुस्ति का भी यही अर्थ है। (प्रुषु दाहे, पाणिनीय धातु पाठ, १/४६७)
तिथितत्त्वे अमावास्या प्रकरणे-
तुलाराशिं गते भानौ अमावस्यां नराधिपः। स्नात्वा देवान् पितॄन् भक्त्या संयुज्याथ प्रणम्य च॥
कृत्वा तु पार्वणश्राद्धं दधिक्षीरगुड़ादिभिः। ततो ऽपराह्ण समये घोषयेन्नगरे नृपः॥
लक्ष्मीः संपूज्यतां लोका उल्काभिश्चापि वेष्ट्यताम्॥
भारत मञ्जरी (१/८९०)-प्रकाशिताग्राः पार्थेन ज्वलदुल्मुक पाणिना।
स्कन्द पुराण (२/४/९)- त्वं ज्योतिः श्री रवीन्द्वग्नि विद्युत्सौवर्ण तारकाः। सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिते नमः॥८९॥
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले। गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥९०॥
दीपदानं ततः कुर्यात्प्रदोषे च तथोल्मुकम्। भ्रामयेत्स्वस्य शिरसि सर्वाऽरिष्टनिवारणम्॥९१॥
पद्म पुराण (६/१२२)-त्वं ज्योतिः श्री रविश्चंद्रो विद्युत्सौवर्ण तारकः। सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिता तु या॥२३॥
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले। गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥२४॥
शंकरश्च भवानी च क्रीडया द्यूतमास्थितौ। भवान्याभ्यर्चिता लक्ष्मीर्धेनुरूपेण संस्थिता॥२५॥
गौर्या जित्वा पुरा शंभुर्नग्नो द्यूते विसर्जितः॥ अतोऽयं शंकरो दुःखी गौरी नित्यं सुखे स्थिता॥२६॥
प्रथमं विजयो यस्य तस्य संवत्सरं सुखम्। एवं गते निशीथे तु जने निद्रार्ध लोचने॥२७॥
तावन्नगर नारीभिस्तूर्य डिंडिम वादनैः। निष्कास्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मीश्च गृहां गणात्॥२८॥