नवरात्रि मुहूर्त और कलश स्थापना
आचार्य दीपक “तेजस्वी”
वर्ष 2020 में शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर, शनिवार से प्रारंभ हो रहे हैं और यह महापर्व 26 अक्टूबर 2020, सोमवार तक मनाया जाएगा।
घटस्थापना से ही नवरात्रि की शुरुआत होती है। नवरात्रि में घटस्थापना यानि कलश स्थापना का खास महत्व होता है। कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन यानि कि प्रतिपदा को जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर घटस्थापना शुभ मुहूर्त में किया जाए, तो देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और जातकों को मनचाहा फल देती हैं, लेकिन यदि घटस्थापना की प्रक्रिया शुभ मुहूर्त और पूरे विधि-विधान से ना हो, तो नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक की जानें वाली पूजा सार्थक नहीं मानी जाती और शुभ फलों की प्राप्ति भी नहीं होती।
यह बेहद ज़रूरी है कि आप नवरात्रि के पहले दिन में होने वाली घटस्थापना से जुड़ी सारी जानकरी रखें, ताकि 9 दिनों तक की जानें वाली पूजा सार्थक हो और उसमें कोई कमी न रह जाए। हमेशा घटस्थापना की प्रक्रिया दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले ही संपन्न कर लेनी चाहिए। इसके अलावा कलशस्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे उत्तम माना गया है।
घटस्थापना 2020 शुभ मुहूर्त
सबसे पहले जानते हैं इस नवरात्रि में घट/कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त -17अक्टूबर शनिवार घटस्थापना करने का समय
06:23:22 से 10:11:54 तक
अवधि3 घंटे 48 मिनट
घटस्थापना की आवश्यक सामग्री
घटस्थापना के लिए सबसे पहले आपको कुछ ज़रूरी सामग्रियों को एकत्रित करना होता है। इसके लिए आपको चाहिए-
•चौड़े मुँह वाला मिट्टी का कलश (आप सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते हैं)
•किसी पवित्र स्थान की मिट्टी
•सप्तधान्य (सात तरह के अनाज)
•जल (संभव हो तो गंगाजल लें)
•कलावा/मौली
•सुपारी
•आम या अशोक के पत्ते (पल्लव)
•अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
•जटा वाला नारियल
•लाल कपड़ा
•फूल और फूलों की माला
•पीपल, बरगद, जामुन, अशोक और आम के पत्ते (सभी न मिल पाए तो इनमें से कोई भी 2 प्रकार के पत्ते ले सकते हैं)
•कलश को ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का)
•फल और मिठाई
घटस्थापना की संपूर्ण विधि
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने वाले लोग सूर्योदय से पहले उठें और स्नान आदि करके साफ कपड़े पहन लें।
अब जिस जगह पर कलश स्थापना करनी हो वहां के स्थान को अच्छे से साफ़ करके एक लाल रंग का कपड़ा बिछा लें और माता रानी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
इसके बाद सबसे पहले किसी बर्तन में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज डालें। ध्यान रहे कि उस बर्तन के बीच में कलश रखने की जगह हो।
अब कलश को उस बर्तन के बीच में रखकर उसे मौली से बांध दें और कलश के उपर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएँ।
कलश में गंगाजल भर दें और उसपर कुमकुम से तिलक करें ।
इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र, पंच रत्न, सिक्का और पांचों प्रकार के पत्ते डाल दें।
पत्तों के ऐसे ऱखें कि वह थोड़ा बाहर की ओर दिखाई दें। इसके बाद कलश पर ढक्कन लगा दें और ढक्कन को अक्षत से भर दें।
अब लाल रंग के कपड़े में एक नारियल को लपेटकर उसे रक्षासूत्र से बाँधकर ढक्क्न पर रख दें।
ध्यान रहे कि नारियल का मुंह आपकी तरफ होना चाहिए। (नारियल का मुंह वह होता है, जहां से वह पेड़ से जुड़ा होता है।)
इसके बाद सच्चे मन से देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए कलश की पूजा करें।
कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूल माला, इत्र और नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
जौ में पूरे 9 दिनों तक नियमित रूप से पानी डालते रहें, आपको एक दो दिनों के बाद ही जौ के पौधे बड़े होते दिखने लगेंगे।
कलश स्थापना के साथ बहुत से लोग अखंड ज्योति भी जलाते हैं। आप भी ऐसा करते हैं तो ध्यान रखें कि ये ज्योति पूरे नवरात्रि भर जलती रहनी चाहिए।
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा करें।
ध्यान रखें कि माँ शैलपुत्री को चढ़ाने वाला प्रसाद शुद्ध गाय के घी से बनाएं। इसके अलावा अगर जीवन में कोई परेशानी है या बीमारी है तो भी माता को शुद्ध घी चढ़ाने से शुभ फल प्राप्त होता है।