नेत्र-रक्षा के साधन एवं अनुपम अंजन
यदि आंखों से प्यार है तो निषिद्ध आहार व्यवहार से सदैव बचे रहो तथा निम्नलिखित नेत्र-रक्षा के उपायों (साधनों) का श्रद्धा से सेवन करो । प्रत्येक उपाय हितकर है किन्तु यदि सभी उपायों का एक साथ प्रयोग करें तो सोने पर सुहागा है ।
चक्षु स्नान प्रातःकाल चार बजे उठकर ईश्वर का चिन्तन करो । फिर शुद्ध जल, जो ताजा और वस्त्र से छना हुआहो, लेकर इससे मुख को इतना भर लो कि उसमें और जल न आ सके अर्थात् पूरा भर लो । इस जल को मुख में ही रखना है, साथ ही दूसरे शुद्ध जल से दोनों आंखों में बार-बार छींटे दो जिससे रात्रि में शयन समय जो मैल अथवा उष्णता आंखों में आ जाती है वह सर्वथा दूर हो जाय । इस प्रकार इस क्रिया से अन्दर और बाहर दोनों ओर से चक्षु इन्द्रिय को ठंडक पहुंचती है । निरर्थक मल और उष्णता दूर होकर दृष्टि बढ़ती है । इस क्रिया को प्रतिदिन करना चाहिये ।
उषः पान- इसके पश्चात् कुल्ली करके मुख नाक आदि को साफ कर लो और नाक के एक वा दोनों छिद्रों द्वारा ही आठ दस घूंट जल पी लो और लघुशंका करके शौच चले जाओ । नाक के द्वारा जल पीने से जहां अजीर्ण (कोष्ठबद्धता) दूर होकर शौच साफ होता है वहां यह क्रिया अर्श (बवासीर), प्रमेह, प्रतिश्याय (जुकाम) आदि रोगों से बचाती और आंखों की ज्योति को बढ़ाती है ।
अन्य उपाय सं० १
(१) शौच प्रतिदिन दूर जंगल में प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में नंगे पैर (बिना जूते पहने) जाओ । भ्रमण के समय जूता, जुराब, खड़ाऊं और चप्पल आदि कुछ भी न पहनो । शीत, ग्रीष्म, वर्षा सभी ऋतुओं में नंगे पैरों भ्रमण करने से सब प्रकार के नेत्ररोग नष्ट होकर नेत्रज्योति बढ़ती है । किन्तु भ्रमण से अभिप्राय गन्दी गलियों से नहीं है । भ्रमण का स्थान शुद्ध हो । नंगे पैर ओस पड़ी हुई घास पर घूमना तो अत्यन्त ही लाभदायक है । सायंकाल सूर्यास्त के पश्चात् भी नंगे पैर जंगल में भ्रमण करना आंखों के लिए लाभदायक है ।
(२) प्रातःकाल और सायंकाल हरी घास देखो । फसल, वृक्षों तथा पादपों को देखने से चक्षुदृष्टि बढ़ती है । हरे भरे उद्यानों में यदि कोई दुखती हुई आंखों में भी भ्रमण करे तो उनमें भी लाभ होता है । हरी वस्तुओं को देखने से चक्षुविकार नष्ट होकर नेत्रज्योति बढ़ती है यह बात साधारण लोग भी जानते हैं । प्राचीन महर्षियों की यह बात कितनी रहस्यपूर्ण है ! ब्रह्मचारी के लिए प्रत्येक ऋतु में नंगे सिर रहना यही सिद्ध करता है कि प्रकृति माता की गोद में ब्रह्मचारी के सब अंग-प्रत्यंगों की, सब ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की स्वाभाविक दृष्टि (उन्नति) होकर वह आजीवन रोगरहित और स्वस्थ रहे ।
अनुपम अंजन विधि – (१) लवङ्ग (२) पीपल बड़ा (३) काली मिर्च (४) नीला थोथा (भुना हुआ) चारों तीन-तीन तोले । (५) अम्बा हल्दी (६) शिरस के बीज (७) फिटकड़ी सफेद (भुनी हुई) (८) नृसार अर्थात् नवसादर (९) कलमीशोरा (१०) समुद्रझाग (११) मूंज की भस्म (राख) और (१२) सुरमा काला । ये सब आठों छः-छः तोले । इन सबको अत्यन्त बारीक पीस डालो और प्रतिदिन रात्रि में सोते समय आंखों में एक-दो सलाई लगा लिया करें । इनके सेवन से आंखें सब प्रकार के रोगों से सुरक्षित रहती हैं और आंखों की ज्योति वृद्धावस्था अर्थात् सौ वर्ष तक नहीं घटती । आंख में अंजन, दांत में मंजन नित कर, नित कर, नित कर के अनुसार इसका प्रयोग करें । बहुत ही लाभदायक है । बार-बार का अनुभूत है ।