बच्चों पर इंटरनेट के दुष्परिणाम
वीडियो गेम्स और फेसबुक जैसे सामाजिक जालस्थल ( इंटरनेट ) आज हमारे जीवन का अविभाज्य घटक बन गए हैं । इनमें सभी का बहुत समय जाता है और इनका हमारे जीवन पर अत्यधिक प्रभाव भी पडता है; परंतु इसमें दिए गए समय का मानवजाति को क्या वास्तव में कुछ लाभ है ? वीडियो गेम्स और सामाजिक जालस्थलों के शारीरिक एवं मानसिक स्तर के परिणामों के साथ ही आध्यात्मिक स्तर पर भी हानिकारक परिणाम होते हैं, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की डॉ. ज्योती काळे ने किया । उच्च शिक्षा एवं संशोधन संस्था, मुंबई द्वारा 7 एवं 8 सितंबर 2018 को आयोजित वैश्वीकरण, साहित्य एवं संस्कृति इस विषय की अंतरराष्ट्रीय परिषद में डॉ. ज्योती काळे, इस विषय में किए शोध पर आधारित शोधनिबंध प्रस्तुत कर रहीं थीं । ज्ञानसागर व्यवस्थापन एवं संशोधन आस्थापन, बाणेर-बालेवाडी, पुणे द्वारा आयोजित परिषद में डॉ. काळे ने 7 सितंबर को वीडियो गेम्स खेलने तथा सामाजिक जालस्थलों में मग्न रहने के सूक्ष्म स्तरीय परिणाम यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया । इस शोधनिबंध के लेखक परात्पर गुरु डॉ. आठवले, डॉ. ज्योती काळे एवं श्री. शॉन क्लार्क हैं । प्रभामंडल एवं ऊर्जा मापक यंत्र तथा सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से वीडियो गेम्स खेलने तथा सामाजिक जालस्थलों में मग्न रहने के सूक्ष्म स्तरीय परिणामों का अध्ययन करने हेतु किए प्राथमिक शोध की डॉ. काळे ने जानकारी दी । पूर्व अणु वैज्ञानिक डॉ. मन्नम मूर्ति द्वारा विकसित किए यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर उपकरण का उपयोग इस शोध के लिए किया गया । यह उपकरण किसी भी वस्तु, वास्तु, प्राणी अथवा व्यक्ति की सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा तथा उनके पास का प्रभामंडल मापता है ।
इस शोध के अंतर्गत किए पहले प्रयोग में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में निवास करने वाले 5 लोगों को केवल एक घंटा एक आक्रामक वीडियो गेम (फर्स्ट पर्सन शूटर वीडियो गेम) खेलने के लिए कहा गया । इन 5 लोगों का गेम खेलने के पहले और बाद में यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर के आधार से प्रभामंडल मापा गया । ऐसा पाया गया कि गेम खेलने के उपरांत इन पांचों की नकारात्मक ऊर्जा बहुत बढ गई अथवा सकारात्मक ऊर्जा घट गई । इनमें से जिन 2 साधकों में गेम खेलने के पूर्व नकारात्मक ऊर्जा नहीं थी, उनमें गेम खेलने के उपरांत नकारात्मक ऊर्जा निर्माण हो गई । इनमें से एक की नकारात्मक ऊर्जा 72 प्रतिशत बढ गई ।
दूसरे प्रयोग में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में निवास करनेवाले अन्य 5 लोगों को उनकी सदैव के सामाजिक जालस्थल खाते की गतिविधियां एक घंटा देखने के लिए कहा गया । यह करने के पहले और बाद में इन पांचों का यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर उपकरण से प्रभामंडल मापा गया । ऐसा पाया गया कि साधकों द्वारा केवल अपने फेसबुक और इन्स्टाग्राम खाते की गतिविधियां देखने पर, उनकी नकारात्मक ऊर्जा 15 से 30 प्रतिशत बढ गई । इनमें से 2 लोगों को स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन इस महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का शोध एवं साधना बतानेवाले जालस्थल के फेसबुक खाते की गतिविधियां देखने के लिए कहा गया । यह करने के पहले और बाद में प्रभामंडल मापने पर यह ध्यान में आया कि साधकों की नकारात्मक ऊर्जा घट गई, जबकि उनकी सकारात्मक ऊर्जा बढ गई । इससे सामाजिक जालस्थल पर हम निश्चित रूप से किस प्रकार की सामग्री देख रहे हैं, यह देखनेवाले पर किस प्रकार का परिणाम होगा, यह निश्चित करनेवाला महत्त्वपूर्ण मापदंड है, ऐसा पाया गया ।
वीडियो गेम एवं सामाजिक जालस्थल मनोरंजन के अन्य साधनों की ही भांति हैं – हम उनका कैसा उपयोग करते हैं और उस माध्यम से क्या देखते हैं, इससे यह निर्धारित होता है कि उनका हम पर सकारात्मक परिणाम होगा अथवा नकारात्मक । दुर्भाग्य से अधिकांश वीडियो गेम्स एवं सामाजिक जालस्थलों की गतिविधियां नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करती हैं । भारतीय संस्कृति जीवन में आध्यात्मिक स्तर की सकारात्मकता में वृद्धि करने पर आधारित है और वह वास्तव में पूरे संसार के लिए आदर्श है; परंतु वीडियो गेम एवं सामाजिक जालस्थलों जैसी आध्यात्मिक दृष्टि से नकारात्मक पद्धतियों के वैश्वीकरण के कारण भारतीय संस्कृति का किस प्रकार र्हास हो रहा है, यह इस प्रयोग से ज्ञात होता है । हमें मिला मानवजन्म अमूल्य है और आध्यात्मिक दृष्टि से यह कालखंड आध्यात्मिक उन्नति करने के स्वर्णिम अवसर के रूप में हमें दिया गया है । हम और हमारे बच्चे क्या देखते हैं, इस विषय में यदि हम सतर्क रहेंगे, तो यह हानिकारक होने के स्थान पर हमारी ऐहिक और पारमार्थिक उन्नति के लिए पूरक हो सकेगा !
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की स्थापना परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अपने 37 वर्षों के आध्यात्मिक शोधकार्य के अनुभव की पृष्ठभूमि पर की है । इस विश्वविद्यालय की ओर से सूक्ष्म जगत और उसका मानव पर होनेवाला परिणाम इस विषय में भी शोध किया जाता है ।
मीनाक्षी सिंह ( सहसंपादक )