भारतीय संस्कार में जन्मदिवस विधान
जन्म दिन निर्णयः अँग्रेजी (ईस्वी) वर्ष सिर्फ सूर्य वर्ष की गणना पर आधारित है। हमारी संवत्सर पद्घति को छोड़कर दुनिया की अन्य सभी तिथि-गणना पद्घतियाँ अधूरी ही हैं। सिर्फ संवत्सर तिथि गणना पद्घति में सूर्य और चंद्रमा की निश्चित कला के साथ चंद्र नक्षत्र की भी सूक्ष्म एवं पूर्ण वैज्ञानिक गणना की जाती है, जिससे वर्ष के बाद उस तिथि के दिन पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर काट कर पुन नक्षत्र मंडल और चंद्रमा के हिसाब से उसी स्थिति में पहुँच जाती है। पिछले साल की कृष्ण जन्माष्टमी को अँग्रेजी तारीख (date) के हिसाब से इस साल मनाएँ तो कोई आश्चर्य नहीं वह तारीख अंधेरे पक्ष की अष्टमी की जगह पूर्णिमा को पड़ जाए। क्या कोई भारतीय इस प्रकार जन्माष्टमी अँग्रेजी तारीख से मना कर आनंदित हो सकता है? इसी प्रकार हमें खुद के जन्म दिन को भी महत्व देना चाहिए।
पूर्णिमा को चंद्रमा २७ नक्षत्रों में से जिस नक्षत्र के आसपास आता है उस नक्षत्र के नाम से उस महीने को संबोधित किया जाता है – पहला चित्रा से चैत्र, फिर विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा,श्रवण, पूर्वाभाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृर्गशिरा, पुष्य, मघा और अंत में उत्तरा फाल्गुनी से फागुन। सूर्य से प्रकाशित होने के कारण और प्रतिदिन पृथ्वी से दूरी घटनेबढ़ने के कारण चंद्रमा पृथ्वी के हर प्राणी को, जिनमें मनुष्य प्रमुख है, प्रभावित करता है। चंद्रमा मन का द्योतक है। साथ ही, चंद्र नक्षत्रों का भी मनुष्य जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए सही चंद्र कला और चंद्र नक्षत्र के समय उदयतिथि के हिसाब से जन्मदिन मनाना ही शुभ तथा कल्याणकारी हो सकता है,जिसकी शास्त्रोक्त विधि ‘वर्धापन’ कहलाती है।
वर्धापन (संक्षिप्त) विधिः उस दिन, प्रथम उबटन आदि से जातक को स्नान कराएँ। इस अवसर पर नए वस्त्र धारण करें तो पुराने वस्त्र किसी जरूरतमंद को दे देने चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुँह करके जातक आसन पर या अपने मातापिता के साथ (या एक की गोद) में बैठ कर, जल से भरे एक कलश को चंदन-रोली से स्वस्तिक अंकित कर रंगोली से चित्रित जगह पर स्थापित करें। इस पर एक कटोरी (शिकोरे) में गेहूँ या चावल रखकर उस पर शुद्घ गोघृत का दीपक जलाएँ। उपस्थित लोगों के मस्तक पर कुंकुम से तिलक लगाएँ। पंडित न हो तो परिवार का एक सदस्य ही निम्नानुसार इस कलश का पूजन करा सकता है।
हाथ में जल, चावल, पुष्प, चंदन, द्रव्य (सिक्का) लेकर संकल्प करें। स्थान, तिथि, गोत्र, नाम (जातक का नाम) का उल्लेख कर के कहें –‘अस्य जातकस्य आयुरारोग्याभिवृद्घेये विष्णु प्रीतये वर्धापन कर्म करिष्ये, तदंगत्वेन च गणेशादि पूजनमहं करिष्ये’। कलश पर गणेश, गौरी और अन्य देवों का निम्न मंत्रों से पूजन करें। पूजन में चंदन, अक्षत, पुष्पमाला, धूपदीप, नैवेद्य, दक्षिणा चढ़ावे।
श्री गणेशाय नमः, श्री गणेश पूज्यामि। श्री गौर्य नमः, श्री गौरी पूज्यामि। … इसी प्रकार वरूणायवरूणं, जन्म नक्षत्राधिपायजन्म नक्षत्राधिपं, पित्रेपितरं, प्रजापत्यैप्रजापति,भानवेभानु, … श्री मार्कण्डेयाय नमः, मार्कण्डेयाय पूज्यामि। अब हो सके तो सही उच्चारण करते हुए सब लोग महामृत्युंजय मंत्र का सुस्वर पाठ करें: – ‘ॐ त्रयंबकं यजामहे,सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥’ इस मंत्र का जाप जातक के पूर्ण हुए वर्षों की संख्या के बराबर किए जा सकते हैं। अंत में यह “मंत्र, मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं महामुने। यदर्चितं मया देवाः परिपूर्ण तदस्तु मे॥‘ पढ़कर प्रार्थना करें कि हे प्रजापति इस जातक को चिरायु (जीवेम् शरद: शतं), आरोग्य, ऐश्वर्य, यश और आनंदमय जीवन प्रदान करें। तत्पश्चात, जातक का रोली से तिलक करें,उसकी अंजलि में मिठाई, फल, आदि रख कर उसे गौदुग्ध में काले तिल और गुड़ डालकर पिलाएँ – सतिलं गुड़ सम्मिश्रं अंजल्यर्धमितं पयः। केक की जगह भी कोई अन्य पौष्टिक व्यंजन बनाया जा सकता हैं, पर केक ही मँगानी हो तो विश्वसनीय शाकाहारी स्थान से केक मँगाने का आग्रह रखना चाहिए।
इसके बाद जातक भगवान को प्रणाम करे और फिर मातापिता एवं सभी बड़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त करे,‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ भी अब किया जा सकता है। तदुपरांत यथाशक्ति अन्न व फल आदि का दान करे और इष्ट मित्रों,परिवारजनों को प्रसाद वितरण कर उत्सव मनाएँ। विद्वान पंडित के परामर्श से इस विधि में सामर्थ्य अनुसार विस्तार या परिवर्तन किया जा सकता है।
समारोह को गरिमामय बनाने के लिए सुंदर काण्ड का आयोजन करना श्रेयस्कर रहेगा। जातक के जितने वर्ष पूर्ण हुए हैं उतने दीप रात्रि में जलाकर घर में सब जगह रखे।
डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी ( प्रबंध सम्पादक )