यज्ञ, दान और धर्म सनातन धर्म के मुख्य आधार
वीर भूमि खिंदौड़ा के परशुराम कालीन शिव मंदिर में सनातन धर्म की रक्षा और सम्पूर्ण मानवता के शत्रु इस्लामिक जिहाद की कामना से किये जा रहे माँ बगलामुखी महायज्ञ व श्रीमद्भागवद कथा के चौथे दिन बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
कथावाचन कर रहे अखिल भारतीय संत परिषद के राष्ट्रिय संयोजक यति नरसिंहानन्द सरस्वती जी महाराज ने आज गीता के माध्यम से बताया की सनातन धर्म के तीन सबसे बड़े आधार स्तम्भ यज्ञ, दान और तप हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट बताया है की मनुष्य को किसी भी स्थिति में यज्ञ, दान और तप इन तीन कर्मो का कभी भी परित्याग नहीँ करना चाहिये क्योंकि इन तीन कर्मो के द्वारा तो ऋषि,मुनि और मनीषी भी अपने आपको पवित्र करते हैं।यज्ञ हमारे धर्म का सबसे प्रथम कर्तव्य है जिसे हर हिन्दू को जरूर करना चाहिये क्योंकि हमारे देवता यज्ञ के द्वारा ही अपना आहार ग्रहण करते हैं। दान के द्वारा समाज की व्यवस्था बनी रहती है और दान के माध्यम से दान देने वाले और दान लेने वालों में प्रेम बना रहता है परंतु दान सदैव सुपात्र को ही देना चाहिये। गीता कहती है की कुपात्र को कभी दान नहीँ करना चाहिए। जो धर्म के शत्रु हो उनको दिया हुआ दान वंशविनाश का कारण बनता है। तप अर्थात प्रबल पुरुषार्थ के द्वारा ही समाज की व्यवस्थाएं कायम रखी जा सकती हैं। हर वह कार्य जो निज स्वार्थ को भूलकर किया जाए,वहीँ तप होता है।
यति नरसिंहानन्द सरस्वती जी महाराज के अनुसार हिन्दुओ ने गीता को भुलाकर जो महापाप किया है,अब उसके प्रायश्चित का समय है।
बाबा परमेन्द्र आर्य और शिवमन्दिर के महंत यति रामानन्द सरस्वती जी महाराज ने उपस्थित जनसमुदाय से यति नरसिंहानन्द सरस्वती जी महाराज की बात सुनने और उसको पूरा करने का आह्वान किया।
सुन्दर कुमार (प्रधान सम्पादक)