ये पुरानी युद्धशैली हैं मुगल युद्धशैली
जब किसी शूरवीर राजपूत(हिन्दू) राजा पर विशाल मुगल सेना हमला करती थी तो वह सीधे नही करती थी। क्योंकि राजपूत राजाओं के किले अभेद्य हुआ करते थे। राजपूत सैनिक प्रचंड वीर थे। मुट्ठीभर राजपूत सैनिक विशाल मुगल सेना पर किले के भीतर भारी पड़ते थे।
अतः मुगल सेना सीधे किले पर आक्रमण नही करती थीं। बल्कि सुनियोजित रणनीति से किले और राज्य को चारों तरफ से घेर लेती थी। जिससे राज्य की प्रजा और किले में मौजूद सैनिकों की रसद आपूर्ति बंद हो जाए।
कुछ दिनों बाद धीरे-धीरे प्रजा और राजा दोनो के पास जमा खाने-पीने का सामान समाप्त होने लगता था। प्रजा और सैनिकों की भूखे मरने की नौबत आ जाती हैं।
तब राजा के पास दो ही विकल्प होते थे..
१ किले के अंदर रहकर प्रजा, सैनिक सहित भूखे मर जाए।
२ या किले से बाहर निकलकर विशाल महासागरीय मुगल सेना से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाए।
मतलब एक तरफ कुँआ दूसरी तरफ खाई..
राजपूत राजा दूसरा विकल्प चुनते थे…
कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में टुकड़े गैंग, देशविरोधी ताकतों ने यही पुरानी युद्धशैली अपनाई।
वे भलीभाँति जानते थे देश का एक बड़ा वर्ग देशभक्त हैं व सरकार भी देशप्रेमी हैं। अतः कोरोना के विरूद्ध लड़ाई में भारत शीघ्र ही विजयश्री पा लेगा। जिससे भारत का डंका सम्पूर्ण विश्व मे गूँजेगा। भारत का सम्मान बढ़ेगा। ये स्थिति देश विरोधियों को कैसे हजम होती ??..
अतः सुनियोजित तरीके से देश मे पहले अलग-अलग जगहों पर कोरोना फैलाया गया। जिससे पूरा देश लॉक डाउन हो जाए। जनता के धंधे-पानी बन्द हो जाए।
ये एक प्रकार से पुरानी युद्धशैली की भांति देश को चारों तरफ से घेरने की रणनीति थी।
दूसरे चरण में जहां एक वर्ग लॉक डाउन का पूर्णतः अक्षरशः पालन कर… गुरु धौम्य के शिष्य आरुणि की तरह लॉक डाउन की मेड़ बनकर, कोरोना की महा बाढ़ को रोकने में लगा रहा।
तो वही दूसरा वर्ग कोरोना छुपाकर, डॉक्टरों पर थूककर, पुलिसकर्मियों मेडिकल टीम पर पत्थरबाजी कर, जाँच में असहयोग कर… लॉक डाउन के बांध को तोड़कर कोरोना की महा बाढ़ को आमंत्रित कर रहा था।
दूसरे चरण में जीत पहले वर्ग “आरुणि” को मिली। विरोधियों के लाख प्रयत्नों के बावजूद कोरोना बाढ़ आरुणियो ने थाम ली।
किन्तु सरकार का सारा खजाना “संक्रमितों” के इलाज में खाली हो गया। शेष बचा धन ग़रीबो को खिलाने उनकी व्यवस्था करने में खर्च हो गया। काम धंधे बन्द होने से मध्यमवर्गीय वर्ग भी हलाकान हो गया।
अतः मुगल युद्धशैली से चारो तरफ से घिरी राज्य और केंद्र सरकारों के पास सिर्फ दो ही विकल्प शेष रह गए।
१ लॉक डाउन में सख्ती कर खाली खजाने से जनता को भूखे मरने दे।
२ या लॉक डाउन में ढील देकर, दुकाने खोलकर, शराब के ठेके खोलकर राजस्व बढ़ाए…. रोजगार दे।
मतलब एक तरफ कुँआ दूसरी तरफ खाई। नुकसान दोनो विकल्प में तय है।
सरकार ने दूसरा विकल्प चुना..
भले ही आप स्वयं को चाणक्य समझे.. परन्तु शकुनियों के पांसों के आगे पाण्डव हार चुके हैं।
एक तरफ लाक्षा गृह की आग हैं… दूसरी तरफ लम्बा वनवास(आर्थिक)…
गुहा बेचैन