ललाटे काश्मीरम्
भारतवर्ष के ललाटपर निवास करने वाला काश्मीर वैसे ही शोभा को प्राप्त करता है जैसे भगवती सरस्वती की दोनों भ्रू लतावों के मध्य केसर की बिंदिया शोभा देती है। संस्कृत का शब्द है कश्मीर जिसका अर्थ है बिन्दी। सरस्वती का स्तोत्र मन्त्र है–
मुखे ते ताम्बूलं नयनयुगले कज्जलकला
ललाटे काश्मीरं विलसति गले मौक्तिकलता।
स्फुरत् कांचीशाटी पृथुकटितटे हाटकमयी
भजामस्त्वां गौरीं नगपति किशोरीमविरतम्।।
सारस्वत साधना का क्षेत्र रहा है–काश्मीर। यहाँ से फैला स्पन्दशास्त्र(शैवागम)आज विश्व को अपनी ओर आकर्षितकर रहाहै। मैं आज भी केसर का ही तिलक लगाता हूँ। मागधी ताम्बूल, दक्षिणी समुद्र से निकली मोती की माला,
कलकत्ता का काजल,कांजीवरम की साड़ी और कमर भाग में लटकती स्वर्ण की करधनी(तगड़ी) एक ओर देवी जी को सुशोभित करती है तो दूसरी ओर विश्व को अपूर्व आश्चर्यकारी आनन्द भी देती है।
कलि युग के पांच हजार वर्ष बीतते ही भारत का मस्तक घायल हुआ, दोनों भुजाएं कटगईं और एक नकली नायक इस देशका प्रधानमंत्री बन गया जो हरहाल में केवल इस देश को घाव देता रहा। आज बहत्तर वर्षों बाद भारत का मस्तक काश्मीर फिर से चमक उठा है। संसद भवन में गृहमंत्री का बयान कि “”हम कश्मीर के लिए बलिदान हो जाएंगे”” बतला रहा है कि अर्जुन प्रबोध पा चुका है। अब काश्मीर के लिए यदि युद्ध हुआ तो वह भी लड़ लेगा।
कांग्रेस का हिन्दु द्रोह-अब जो कांग्रेस पार्टी संसद भवन में कर रही है उसकी दुर्गंधि से हिन्दू जनता का मन अत्यन्त क्षुब्ध होता चला जा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि राजघाट समाधि स्थल की भूमि भी लोग मुक्त करने की मांग उठाने लगें। अब मुझे कांग्रेस पार्टी का भविष्य धारा ३७० की तरह ही विखंडित दिख रहा है जिसमें उसका अनिवार्य भाग तो रहेगा शेष भाग नष्ट कर दिया जाएगा।
भारत को विजय की आदत डालनी ही होगी-युद्ध छिड़ गया है। यह रुकेगा नहीं। यह बढ़ते हुए भारत को विस्तार देगा। भारत के भीतर भारत के शत्रुओं को पहचानना होगा।
२०१९-अपना काम तेजी से कर रहा है। खंडित स्वप्न अब केवल रात्रि की नींद में ही नहीं दिखेगा बल्कि अब वह खुली आँखों को सुहाना भी लगेगा।
२०१९- भारत के लिए चक्रव्यूह के अनेक दरवाजों को तोड़ेगा। देखते चलिए। इस बार पार्थ ने सुभद्रा को सोने ही नहीं दिया। उसे रात भर बैठाए रखा। परिणाम हुआ अभिमन्यु को सातो व्यूह भेदने की विद्या ज्ञात हो चुकी है। भारत काश्मीर के साथ लवपुरम तक के संकल्प को मन ही मन दुहराने लगा है। महाराजा रणजीतसिंह के शेरों ने छलांग लगाना आरम्भ कर दिया है।
डॉ कामेश्वर उपाध्याय (अखिल भारतीय विद्वत्परिष)