वासन्तिक नवरात्री व्रत
चैत्र ,आषाढ़ ,आश्विन और माघ के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक की तिथियाँ नवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हैं | इनमे चैत्र का नवरात्र “ वासन्तिक नवरात्र ” कहलाता है | इनमे आदिशक्ति जगतजननी सिंह वाहिनी माँ भगवती की विशेष आराधना की जाती है |यह नवरात्र स्त्री पुरुष दोनों ही कर सकते हैं यदि स्वयं न कर सकें तो पति ,पत्नी ,पुत्र या ब्राहमण को प्रतिनिधि बनाकर व्रत पूर्ण कराया जा सकता है | व्रत में उपवास , अयाचित (बिना मांगे प्राप्त भोजन) नक्त (रति में भोजन करना ) या एक भुक्त ( एक बार भोजन करना ) जो बन सकें यथासामर्थ्य वह करें | यदि नवरात्रों में घटस्थापन के बाद सूतक (अशौच) हो जाए तो कोई दोष नही लगता ,परन्तु पहले हो जाए तो पूजनादि कृत्य स्वयं न करें यदि सुटक का पहले से अनुभव हो रहा हो तो नान्दिश्राध करना लाभकारी होता है |
पूजा विधि : चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से पूजन प्रारम्भ होता है | सम्मुखी प्रतिपदा शुभ कारी है अत: वही ग्राह्य है | अमायुक्त प्रतिपदा में पूजन नही करना चाहिए,परन्तु जहाँ प्रतिपदा तिथि का लोप हो रहा हो वहाँ अमायुक्त प्रतिपदा में भी शुभ समय विचार कर पूजन करना श्रेष्ठ है | सर्वप्रथम प्रातः काल स्वयं स्नानादि कृत्यों से पवित्र होकर निष्काम परक या कामनापरक संकल्प कर गोमय से पूजा स्थान को लीपकर अथवा उस स्थान को साफ़ कर पवित्र कर लेना चाहिए पवित्र मिट्टी से वेदी का निर्माण करें ,फिर उसमे जौ और गेहूं बोए तथा उस पर यथाशक्ति मिटटी ,तांबा ,चांदी या स्वर्ण का कलश स्थापित करें तदुपरांत माँ जगदम्बा को सिंघासनआरूढ़ कर षोड्सोपचार (आवाहन ,आसन ,पाध ,अर्घ्य ,आचमन , स्नान ,स्नानांग आचमन ,दुग्ध स्नान ,दधि-घृत-मधु-शर्करा स्नान ,पंचाम्रत स्नान ,गंधोदक स्नान व् शुधोदक स्नान,आचमन वस्त्र ,आचमन सौभाग्य सूत्र ,चन्दन ,हरिद्रचुर्ण ,कुमकुम ,सिंदूर ,कज्जल ,दुर्वांकुर ,बिल्वपत्र ,आभूषण,पुष्पमाला, नानापरिमल द्रव्य ,सौभाग्य पेटिका ,धुप,दीप ,नैवैध आचमन ,ऋतुफल ,ताम्बुल ,दक्षिणा ,आरती ,प्रदक्षिणा, मन्त्र, पुष्पांजली ,नमस्कार, क्षमा याचना ,अर्पण ) पूजन् करें | सामर्थानुसार नित्य होम ,श्री दुर्गा सप्तशती का सम्पुट या साधारण पाठ या माँ भगवती के लीला चरित्रों का श्रवण या मन्त्रों का विधिवत् व् श्रधायुक्त होकर जाप करें | अखंड दीपक का विधान है |
कुमारी पूजन: नवरात्र व्रत का अनिवार्य अंग कुमारी पूजन ही है | कुमारिकाएं जगज्जननी माँ दुर्गा की प्रत्यक्ष विग्रह हैं | सामर्थ्य हो तो नौ दिन तक नौ अन्यथा सात ,पांच ,तीन या एक कन्या को माँ दुर्गा स्वरुप मानकर पूजा करके भोजन कराना चाहिए |आसन कुमारियों को एक पंक्ति में बिठाकर ‘ॐ कौमर्ये नमः,से कुमारियों का पंचोपचार कर पूजन करें |
कहीं कहीं अष्टमी या नवमी के दिन या नित्य प्रति कडाही पूजा की भी परम्परा है कडाही में हलवा ,पूरी ,पुआ आदि बनाकर उसे देवी जी को अर्पण किया जाता है तत्पश्चात चमचे और कडाही में मौली बांधकर “ॐ अन्न्पुर्नाये नमः ,इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करना चाहिए | पुनः कुमारी बालिकाओं को भोजन कराकर उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा देकर सह्सम्मान विदा करना चाहिए |
माँ भगवती की विशेष क्रपा प्राप्ति हेतु षोडशोपचार पूजन के बाद नियमानुसार नैवैध के रूप में प्रतिपदा तिथि में गाय के घृत माँ को अर्पण करना चाहिए | और फिर वह घृत ब्राह्मण को देना चाहिए | इसके फलस्वरूप फिर वह मनुष्य कभी रोगी नही हो सकता | द्वितय तिथि को पूजन करके माँ भगवती को चीनी का भोग लगावें और दान करें यों करने से मनुष्य दीर्घायु होता है | त्रितया के दिन भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होती है | यहाँ भी दान देना चाहिए यह दुखों से मुक्त होने का एक परम साधन है | चतुर्थी के दिन मालपुआ का नैवैध अर्पण किया जाए और फिर उसको भी दान किया जाए इस अपूर्व दान मात्र से ही किसी प्रकार के विघ्न सामने नही आ सकते | पंचमी तिथि के दिन पूजा करके माँ भगवती को केले का भोग लगावें ऐसा करने से पुरुष की बुध्धि का विकास होता है | षष्टी तिथि के दिन देवी के पूजन के लिए मधु (शहद)का महत्त्व है | और इसके प्रभाव से साधक सुन्दर रूप को प्राप्त करता है | सप्तमी के दिन माँ अम्बे की पूजा में गुड का नैवैध अर्पण करके ब्राह्मण को देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य शोक मुक्त हो जाता है | अष्टमी के दिन भगवती को नारियल का प्रसाद चढ़ावें और दान देवें इसके फलस्वरूप उस पुरुष के पास किसी प्रकार के संताप नहीं आ सकते | नवमी तिथि को माँ के लिए लावा अर्पण करके ब्राह्मण को देना चाहिए इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुखी रह सकता है |
विसर्जन : नौ रात्रि व्यतीत होने पर दसवें दिन या पूर्णिमा तिथि को विसर्जन हेतु पूजनोपरान्त निम्न प्रार्थना करें –
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे |
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान कामास्चं देहि मे ||
महिषघ्नी महामाये चामुंडे मुंडमालनी |
आयुरारोग्य्मैश्वर्य देहि देवी नमस्तुते ||
इस प्रार्थना को करने के बाद हाथ में अक्षत व् पुष्प लेकर भगवती का निम्न मन्त्र से विसर्जन करना चाहिए :-
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानम परमेश्वरी |
पूजाराघनकाले च पुनरागमनाय च ||
डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी ( प्रबंध संपादक )