शास्त्रों के मिथ्या अनुवाद द्वारा दुष्प्रचार
अरुण कुमार उपाध्याय(धर्मज्ञ)
कई बार लोग किशोरी मोहन गांगुली के महाभारत अनुवाद को उद्धृत कर कुछ बातें कहते हैं-
१-युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कर्ण को सूतपुत्र होने के कारण अपमानित किया गया था।
२-राजा रन्तिदेव के यहाँ यज्ञ के लिए प्रतिदिन २००० गायें मारी जाती थीं।
इसी प्रकार भगवान् राम के मांसाहार का वर्णन कई लोग करते हैं। अभी मुरारी बापू ने बलराम जी के दिन रात शराब पीने का निराधार वर्णन आरम्भ किया है।
ये सभी भारतीय संस्कृति की यथासम्भव निन्दा के लिए झूठे प्रचार हैं।
१-युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कर्ण को निमन्त्रण तथा आगमन का बहुत सम्मान सहित भीष्म पितामह के साथ वर्णन है-
धृतराष्ट्रश्च भीष्मश्च विदुरश्च महामतिः॥५॥
दुर्योधनपुरोगाश्च भ्रातरः सर्व एव ते।
गान्धारराजः सुबलः शकुनिश्च महाबलः॥६॥
अचलो वृषकश्चैव कर्णश्थ रथिनां वरः।
तथा शल्यश्च बलवान् वाह्लिकश्च महाबलः॥७॥
(महाभारत, सभा पर्व, अध्याय ३४)
क्या कर्ण को रथियों में सर्वश्रेष्ठ कहना उसका अपमान है? राजा के रूप में निमन्त्रण ही पूर्ण सम्मान है।
उसके बाद विस्तार से वर्णन है कि युधिष्ठिर ने सभी निमन्त्रित लोगों को नमस्कार किया तथा नकुल द्वारा उनको अच्छे भवनों में ठहराया।
२-रन्तिदेव पर दैनिक गोहत्या का आक्षेप-
महाभारत, द्रोण पर्व, अध्याय ६७-
सांकृते रन्तिदेवस्य यां रात्रिमतिथिर्वसेत्।
आलभ्यन्त तदा गावः सहस्राण्येकविंशतिः॥१४॥
= जो भी अतिथि संकृति पुत्र रन्तिदेव के यहाँ रात में आता था, उसे २१,००० गौ छू कर दान करते थे।
कोई भी २१,००० गौ एक बार क्या, जीवन भर में नहीं खा सकता है। यहां गो शब्द सम्पत्ति की माप भी है। मुद्राओं के नाम बदलते रहे हैं। उनका स्थायी नाम था-गो, धेनु। किसी को एक लाख गाय दी जायेगी तो वह उनको रख नहीं पायेगा, न देख भाल कर सकता है। यहाँ गो बड़ी मुद्रा (स्वर्ण), धेनु छोटी मुद्रा (रजत), निष्क सबसे छोटी मुद्रा है। निष्क से पंजाबी में निक्का, या धातु नाम निकेल हुआ है। निष्क मिलना अच्छा है, अतः नीक का अर्थ अच्छा है।
अन्नं वै गौः (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/९/८/३ आदि)
इन्द्र मूर्ति १० धेनु में खरीदने का उल्लेख है-
क इमं दशभिर्ममेन्द्रं क्रीणाति धेनुभिः। (ऋक, ४/२४/१०)
२१००० गो या स्वर्ण मुद्रा देने के बाद उनको अच्छा भोजन कराते थे-
तत्र स्म सूदाः क्रोशन्ति सुमृष्ट मणिकुण्डलाः।
सूपं भूयिष्ठमश्नीध्वं नाद्य भोज्यं यथा पुरा॥
वहाँ कुण्डल, मणि पहने रसोइये पुकार पुकार कर कहते थे-आप लोग खूब दाल भात खाइये। आज का भोजन पहले जैसा नहीँ है, उससे अच्छा है।
यही वर्णन शान्ति पर्व (६७/१२७-१२८) में भी है।
अनुशासन पर्व (११५/६३-६७) में बहुत से राजाओं की सूची है जिन्होंने तथा कई अन्य महान् राजाओं ने कभी मांस नहीँ खाया था। इनमें रन्तिदेव का भी नाम है-
श्येनचित्रेण राजेन्द्र सोमकेन वृकेण च।
रैवते रन्तिदेवेन वसुना, सृञ्जयेन च॥६३॥
एतैश्चान्यैश्च राजेन्द्र कृपेण भरतेन च।
दुष्यन्तेन करूषेण रामालर्कनरैस्तथा॥६४॥
विरूपश्वेन निमिना जनकेन च धीमता।
ऐलेन पृथुना चैव वीरसेनेन चैव ह॥६५॥
इक्ष्वाकुणा शम्भुना च श्वेतेन सगरेण च।
अजेन धुन्धुना चैव तथैव च सुबाहुना॥६६॥
हर्यश्वेन च राजेन्द्र क्षुपेण भरतेन च।
एतैश्चान्यैश्च राजेन्द्र पुरा मांसं न भक्षितम॥६७॥
श्येनचित्र, सोमक, वृक, रैवत, रन्तिदेव , वसु, सृञ्जय, अन्यान्य नरेश, कृप, भरत, दुष्यन्त, करूष, राम, अलर्क, नर, विरूपाश्व, निमि, बुद्धिमान जनक, पुरूरवा, पृथु, वीरसेन, इक्ष्वाकु, शम्भु, श्वेतसागर, अज, धुन्धु, सुबाहु, हर्यश्व, क्षुप, भरत-इन सबने तथा अन्य राजाओं ने कभी मांस नहीँ खाया था।
३-भगवान् राम आदि कई राजाओं का ऊपर उल्लेख है कि उन लोगों ने जीवन में कभी मांस नहीं खाया।
४-यज्ञ में उपरिचर वसु ने पशु बलि का समर्थन किया था जिस पर ऋषियों ने उनको शाप दिया था।
महाभारत, शान्ति पर्व, अध्याय ३३७-
देवानां तु मतं ज्ञात्वा वसुना पक्षसंश्रयात्॥१३॥
छागेनाजेन यष्टव्यमेवमुक्तं वचस्तदा।
कुपितास्ते ततः सर्वे मुनयः सूर्यवर्चसः॥१४॥
ऊचुर्वसुं विमानस्थं देवपक्षार्थविदिनम्।
सुरपक्षो गृहीतस्ते यस्मात् तस्माद दिवः पत॥१५॥
अद्यप्रभृति ते याजन्नाकाशे विहता गतिः।
अस्मच्छापाभिघातेन महीं भित्वा प्रवेक्ष्यसि॥१६॥
यहां अज का अर्थ बीजी पुरुष कहा गया है, जिसकी यज्ञ द्वारा उपासना होती है।
यज्ञ में पशु का आलभन करते हैं-उसका पीठ, कन्धा आदि छूते है। इसे शमिता कहते हैं, अर्थात् शान्त करने वाला। शान्त करने के लिए हत्या नहीँ की जाती है। पर इसका अर्थ किया जाता है कि पशु का कन्धा आदि छू कर देखते हैं कि कहाँ से उसका मांस काटना अच्छा होगा। आजकल भी घुड़सवारी सिखाई जाती है कि घोड़े पर चढ़ने के पहले उसकी गर्दन तथा कन्धा थपथपाना चाहिए। इससे वह प्रसन्न हो कर अच्छी तरह दौड़ता है। बच्चों की भी प्रशंसा के लिए उनकी पीठ थपथपाते हैं, यद्यपि वे भाषा भी समझ सकते हैं। यही आलभन है। शिष्य भी पहले गुरु को जा कर नमस्कार करता है तो गुरु उसके कन्धे पर हाथ रख कर आलभन करते हैं। यदि आलभन द्वारा उसकी हत्या करेंगे तो शिक्षा कौन लेगा? गुरु को भी फांसी होगी। हर अवसर पर यदि कोई पैर छूकर नमस्कार करे तो उसकी पीठ पर ही हाथ रख कर ही आशीर्वाद दिया जाता है।
५-बलराम जी का मदिरा पान-ऐसा वर्णन करने वाले से अधिक मूर्ख मिलना सम्भव नहीं है। किसी भी विद्या या खेल में अच्छा होने के लिए पूरे जीवन साधना करनी पड़ती है। बलराम जी अपने समय के सर्वश्रेष्ठ पहलवान तथा गदा युद्ध के विशेषज्ञ थे। दुर्योधन उनके पास ही गदा युद्ध की विशेष शिक्षा लेने गया था। पहलवान होने के लिए दैनिक कम से कम ५ घण्टे व्यायाम तथा सादा पौष्टिक भोजन करना पड़ता है। यदि मद्य पान द्वारा ही मल्ल होने की बात सिखायेंगे तो भारत में कभी अच्छे खिलाड़ी नहीँ हो सकते जो ओलम्पिक में जीत सकें। बलराम जी वारुणी लेते थे जो कठोर व्यायाम के लिए आवश्यक है। अष्टाङ्ग हृदय सूत्र (७/४२)- श्वेतसुरा सा च श्वेत पुनर्नवादि मूलयुक्तेन शालिपिष्टेन क्रियते। गुणाः लघुस्तीक्ष्णा हृद्या शूल- कास-वमि -श्वास-विबन्ध- आध्मान- पीनसघ्नी। सुश्रुत संहिता, उत्तर (४२/१०२)-वात शूल शमनी।
शरीर की कोशिकाओं में टूट फूट होती है। उनके पुनर्निर्माण के लिए जो ओषधि है उसे पुनर्नवा कहते हैं। इसके अतिरिक्त शरीर गर्म होने के बाद अचानक जल या भोजन लेने पर कास या वात हो जाता है। ठीक आराम नहीँ होने पर शूल तथा वायु विकार होता है। इन कष्टों को दूर करने के लिए पुनर्नवा आदि मूलों को धान के चूर्ण के साथ मिलाकर जो ओषधि बनती है, उसे वारुणी कहा गया है।