श्री कृष्ण जन्माष्टमी मत
जन्माष्टमी समय के बारे में कई मत हैं। मथुरा में भगवान् कृष्ण के जन्म समय जैसी स्थिति नहीँ आ सकती। उनके जन्म के दिन सूर्योदय से अर्धरात्रि तक जब जन्म हुआ भाद्रकृष्ण अष्टमी थी, अमान्त मास के लिये श्रावण कृष्ण अष्टमी। उस समय रोहिणी नक्षत्र का तृतीय पाद था, अतः उनके कुल पुरोहित गर्ग जी ने राशिनाम विष्वक्सेन रखा था। किन्तु उनका जन्मदिन मथुरा में नहीँ, अगले दिन नन्दग्राम (वृन्दावन) में मनाया गया। ठीक ऐसी स्थिति मथुरा में भी नहीँ हो सकती है। स्थानीय तिथि के अनुसार तीन मत हैं-
(१) जिस दिन स्थानीय सूर्योदय के समय भाद्रकृष्ण अष्टमी हो, उस दिन जन्माष्टमी मनायें। भारत में ऐसा २४ अगस्त को इस वर्ष है।
(२) जिस दिन स्थानीय अर्धरात्रि को भाद्रपद कृष्ण अष्टमी है, उस दिन जन्माष्टमी मनाये। इस मत से २३ अगस्त को जन्माष्टमी है।
(३) जिस दिन सूर्योदय या अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र हो, उस दिन जन्माष्टमी मनाये। अर्धरात्रि में रोहिणी का तृतीय पाद नहीं भी हो सकता है। इस मत से २४ अगस्त को जन्माष्टमी होगी।
सभी का समन्वय है कि अर्धरात्रि में अष्टमी होने पर जन्माष्टमी २३ अगस्त को तथा आगामी दिन नन्दोत्सव मनायें।
श्री राम जन्म पुनर्वसु में हुआ, उस समय पुनर्वसु नक्षत्र में विषुव संक्रान्ति होती थी। भगवान् कृष्ण का जन्म रोहिणी में हुआ, उस समय रोहिणी में विषुव संक्रान्ति थी। अदिति-वामन काल में पुनर्वसु नक्षत्र से नया वर्ष आरम्भ होता था-
अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्-का एक अर्थ यह भी है। अतः इस नक्षत्र को पुनर्वसु कहते हैं तथा इसका देवता अदिति है।
आज भी जब सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र में होता है तो रथयात्रा होती है।
भगवान् राम के जन्म वर्णन में भी कहा है-
ततश्च द्वादशे मासे ऋतूनां षट् समत्ययुः।
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये, स्वोच्च संस्थेषु पञ्चषु॥
ग्रहाणां कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोक नमस्कृतम्॥
श्री अरुण उपाध्याय (धर्म शास्त्र विशेषज्ञ)