संवत्सरारम्भ (नववर्ष) विशेष!
कृतिका खत्री (सनातन संस्था)
हिन्दुओ, नववर्ष 1 जनवरी को नहीं, अपितु हिन्दू संस्कृतिनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाकर धर्मपालन के आनंद का अनुभव लें !
संवत्सरारम्भ मनाने का शास्त्र!
31 दिसंबर की रात में मद्यपान और मांसाहार कर केवल मनोरंजन में बीतानेवाले हिन्दू !
हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ धर्म है; परंतु दुर्भाग्य की बात है कि हिन्दू ही इसे समझ नहीं पाते । पाश्चात्यों के अयोग्य और अधर्मी कृत्यों का अंधानुकरण करने में ही अपनेआप को धन्य समझते हैं । 31 दिसंबर की रात में नववर्ष का स्वागत और 1 जनवरी को नववर्षारंभदिन मनाने लगे हैं ।
इस दिन रात में मांसाहार करना, मद्यपान कर फिल्मी गीतों पर नाचना, पार्टियां करना, वेग से वाहन चलाना, युवतियों से छेडछाड करना आदि अनेक कुप्रथाओं में वृद्धि होती दिखाई दे रही है । फलस्वरूप युवा पीढी विकृत और व्यसनाधीन हो रही है और नववर्षारंभ अशुभ पद्धति से मनाया जा रहा है । स्वतंत्रता के पश्चात भी अंग्रेजों की मानसिक दास्यता में जकडे रह जाने का यह उदाहरण है ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्षारंभ दिन होने के कारण
प्राकृतिक कारण
इस समय अर्थात वसंत ऋतु में वृक्ष पल्लवित हो जाते हैं । उत्साहवर्धक और आल्हाद दायक वातावरण होता है । ग्रहों की स्थिति में भी परिवर्तन आता है । ऐसा लगता है कि मानो प्रकृति भी नववर्ष का स्वागत कर रही है ।
ऐतिहासिक कारण
इस दिन प्रभु श्रीराम ने बाली का वध किया । इसी दिन से शालिवाहन शक आरंभ हुआ ।
आध्यात्मिक कारण
सृष्टि की निर्मिति
इसी दिन ब्रह्मदेव द्वारा सृष्टि का निर्माण, अर्थात सत्ययुग का आरंभ हुआ । यही वर्षारंभ है । निर्मिति से संबंधित प्रजापति तरंगें इस दिन पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में आती हैं । गुडी अर्थात धर्मध्वज पूजन से इन तरंगों का पूजक को वर्ष भर लाभ होता है ।
साढे तीन मुहूर्तों में से एक!
वर्षप्रतिपदा साढे तीन मुहूर्तों में से एक है, इसलिए इस दिन कोई भी शुभकार्य कर सकते हैं । इस दिन
कोई भी घटिका (समय) शुभमुहूर्त ही होता है ।
संवत्सरारंभके साथही वर्षारंभदिनका अतिरिक्त एक विशेष महत्त्व
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया । इसके प्रतीक स्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है ।
वर्ष प्रतिपदा, एक तेजोमयी दिन, तो 31 दिसंबर की रात एक तमोगुणी रात !
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के सूर्योदय पर नववर्ष आरंभ होता है । इसलिए यह एक तेजोमय दिन है । किंतु रात के 12 बजे तमोगुण बढने लगता है । अंग्रेजों का नववर्ष रात के 12 बजे आरंभ होता है । प्रकृति के नियमों का पालन करने से वह कृत्य मनुष्य जाति के लिए सहायक और इसके विरुद्ध करने से वह हानिप्रद हो जाता है । पाश्चात्य संस्कृति तामसिक (कष्टदायक) है, तो हिन्दू संस्कृति सात्त्विक है !
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन तेजतत्त्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रा में कार्यरत रहती हैं
धर्मशास्त्र ने बताया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन तेजतत्त्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रा में कार्यरत रहती हैं । सूर्योदय के समय इन तरंगों से प्रक्षेपित चैतन्य अधिक समयतक वातावरण में बना रहता है । यह चैतन्य जीव की कोशिका-कोशिकाओं में संग्रहित होता है और आवश्यकता के अनुसार उपयोग में लाया जाता है । अत: सूर्योदय के उपरांत 5 से 10 मिनट में ही ब्रह्मध्वज को खडाकर उसका पूजन करने से जीवों को ईश्वरीय तरंगों का अत्याधिक लाभ मिलता है ।
ध्वजारोपण अर्थात् ब्रह्मध्वज खडा करनेकी पद्धति
ब्रह्मध्वज अर्थात धर्मध्वज/गुडी खडी करने के लिए आवश्यक सामग्री
हरा गीला 10 फुटसे अधिक लंबाई का बांस, तांबे का कलश, पीले रंग का सोने के तार के किनारवाला अथवा रेशमी वस्त्र, कुछ स्थानों पर लाल वस्त्र का भी प्रयोग किया जाता है, नीम के कोमल पत्तों की मंजरीसहित अर्थात पुष्पों(फूलों) सहित छोटी टहनी, शक्कर के पदकों अर्थात पताशे की माला एवं (फूलोंका हार) पुष्पमाला, ध्वजा खडी करनेके लिए पीढा ।
गुडी सजानेकी पद्धति
प्रथम बांस को पानी से धोकर सूखे वस्त्र से पोंछ लें । पीले वस्त्र को इस प्रकार चुन्नट बना लें । अब उसे बांस की चोटी पर बांध लें । उसपर नीम की टहनी बांध लें । तदुपरांत उसपर शक्कर के पदकों अर्थात पताशों की माला बांध लें । फिर (फूलों का हार) पुष्पमाला चढाएं । कलश पर कुमकुम की पांच रेखाएं बनाएं । इस कलश को बांस की चोटी पर उलटा रखें । सजी हुई गुडी को पीढे पर खडी करें एवं आधार के लिए डोरी से बांधें।
ब्रह्मध्वजको सजानेके उपरांत उसके पूजनके लिए आवश्यक सामग्री
नित्य पूजा की सामग्री, नवीन वर्ष का पंचांग, नीम के पुष्प(फूल) एवं पत्तो से बना नैवेद्य ।
नीम के पत्तों का प्रसाद
यह नैवेद्य बनाने के लिए नीम के पुष्प (फूल) एवं 10-12 कोमल पत्ते, 4 चम्मच भिगोई हुई चने की दाल, 1 चम्मच जीरा, 1 चम्मच मधु तथा स्वाद के लिए एक चुटकी भर हिंग लें । इस सामग्री को एक साथ मिला लें एवं इस मिश्रण को पीसें । यह बना ध्वज को समर्पित करने के लिए नैवेद्य । वर्षारंभ के दिन ब्रह्मध्वजा को निवेदित करने के लिए यह विशेष पदार्थ बनाया जाता है एवं उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है । कई स्थानों पर इसमें काली मिर्च, नमक एवं अजवाईन भी मिलाते हैं । नीम के पत्तों से बने प्रसाद की सामग्री में इस दिन जीवों के लिए आवश्यक ईश्वरीय तत्त्वों को आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है ।
रक शक्तिके कणोंका वातावरणमें संचार होता है। ईश्वरसे आनंदका प्रवाह प्रसादमें आकृष्ट होता है ।
यह प्रसाद ग्रहण करने से व्यक्ति के देह में आनंद के स्पंदनों का संचार होता है ।
प्रत्यक्ष ध्वजपूजनकी कृति
सूर्योदय के 5-10 मि. उपरांत ध्वजपूजन आरंभ करने के लिए पूजक पूजास्थल पर रखे पीढे पर बैठे ।
प्रथम (वह) आचमन करे । उपरांत प्राणायाम करे ।
अब देशकालकथन करे ।
उसके उपरांत ध्वजापूजन के लिए संकल्प करे ।
अस्मिन प्राप्ते, नूतन संवत्सरे, अस्मत गृहे, अब्दांतः नित्य मंगल अवाप्तये ध्वजारोपण पूर्वकं पूजन तथा आरोग्य अवाप्तये निंबपत्र भक्षणं च करिष्ये ।
अब गणपतिपूजन करें ।
तदुपरांत कलश, घंटा एवं दीपपूजन करें ।
तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण करें; अर्थात पूजा सामग्री, आस-पास की जगह तथा स्वयं पर तुलसीपत्र से जल छिडकें ।
अब ‘ॐ ब्रह्मध्वजाय नमः ।’ इस मंत्र का उच्चारण कर ध्वजापूजन आरंभ करें ।
प्रथम चंदन चढाएं ।
तदुपरांत हलदी कुमकुम चढाएं ।
अक्षत समर्पित करें।
पुष्प चढाएं ।
इसके उपरांत उदबत्ती (अगरबत्ती) दिखाएं ।
तदुपरांत दीप दिखाएं ।
नैवेद्य निवेदित करें ।
अब इस प्रकार प्रार्थना करें ।
ब्रह्मध्वज नमस्तेस्तु सर्वाभीष्ट फलप्रद ।
प्राप्तेस्मिन् वत्सरे नित्यं मद्गृहे मंगलं कुरू ।।
पूजनके उपरांत परिजनोंके साथ प्रार्थना करें ;
‘हे ब्रह्मदेव, हे विष्णु, इस ध्वज के माध्यम से वातावरण में विद्यमान प्रजापति, सूर्य एवं सात्त्विक तरंगें मुझे ग्रहण हों । उनसे मिलनेवाली शक्ति तथा चैतन्य निरंतर बना रहे । इस शक्ति का उपयोग मुझ से अपनी साधना हेतु हो, यही आपके चरणों में प्रार्थना है !
प्रार्थना करने के उपरांत ध्वजा को चढाया गया नीम के पत्तों का नैवेद्य वहां उपस्थित सभी में प्रसाद के रूप में बांटें एवं स्वयं ग्रहण करें ।
इस प्रकार भावपूर्ण रितीसे ध्वज खडा करते ही उसमें सूक्ष्म स्तरपर पर गतिविधियांआरंभ होती हैं । ईश्वरीय तरंगे उसकी ओर आकृष्ट होने लगती हैं ।
संदर्भ – सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’