साधना द्वारा आध्यात्मिक समस्याओं से मुक्ति
आजकल अचानक और अज्ञात कारणों से उत्पन्न होनेवाले रोगों को डॉक्टर इडिओपैथिक यह नाम देते हैं । इसके विपरीत, आयुर्वेद ने अपनी 8 शाखाओं में से एक को ग्रह चिकित्सा अथवा भूतविद्या नाम देकर, इसे मनोविकार और नकारात्मक स्पंदनों से उत्पन्न होनेवाले रोगों को समर्पित किया है । किसी भी शारीरिक अथवा मानसिक रोग का मूल कारण प्रतिकूल प्रारब्ध अथवा नकारात्मक स्पंदन हो सकते हैं, यह आयुर्वेद की इस शाखा की धारणा है । इतना ही नहीं, अनुभवी वैद्य तो व्यक्ति की भूत नाडी जांच कर यह भी बता सकता है कि उसे अनिष्ट शक्ति की बाधा है अथवा नहीं । ऐसी समस्या आध्यात्मिक उपायों से थोडे समय के लिए हल की जा सकती है । फिर भी, प्रतिदिन आध्यात्मिक साधना करने पर ही इस समस्या को स्थायीरूप से समाप्त किया जा सकता है ।
यह विचार महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की श्रीमती संदीप कौर-मुंजाल ने व्यक्त किया । वे रोहतक, हरियाणा में 29 से 31 अक्टूबर तक चले आयुर्वेद, योग, चिकित्सा, ज्योतिषशास्त्र, पंचकर्म, नेचरोपैथी, वैदिक सूक्ष्म-जीवशास्त्र और अन्य जैविक शास्त्र विषयों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम सत्र की मुख्य वक्ता (की नोट स्पीकर) के रूप में बोल रही थीं । उन्होंने आयुर्वेद की भूतविद्या के विषय में शोध – नकारात्मक प्रभाव से रक्षा करनेवाले प्राकृतिक पदार्थ यह आध्यात्मिक शोधनिबंध पढा । इस शोधनिबंध के लेखक महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हैं तथा सहायक लेखक श्री. शॉन क्लार्क और श्रीमती संदीप कौर-मुंजाल हैं । इस सम्मेलन का आयोजन – नाडी वैद्य कायाकल्प, रोहतक; बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, रोहतक; इंडियन फाउंडेशन फॉर वैदिक साइन्स, भारत और इंटरनॅशनल फाउंडेशन फॉर वैदिक साइन्स, कॅनाडा ने संयुक्तरूप से किया था ।
श्रीमती कौर-मुंजाल ने आगे बताया, रोगी के रोगों का विशेषतः अकारण रोगों का मूल कारण आध्यात्मिक होता है, यह बात प्रत्येक डॉक्टर को समझनी चाहिए । प्रारब्ध,नकारात्मक स्पंदन, अतृप्त पितरों के सूक्ष्मदेह ये आध्यात्मिक कारणों के कुछ उदाहरण हैं । मनुष्य को त्रस्त करनेवाली समस्याओं में 50 प्रतिशत का मूल कारण आध्यात्मिक होता है, यह आध्यात्मिक शोधों से सिद्ध हुआ है । जब रोगी की समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक होता है, तब उसका उपचार भी आध्यात्मिक होना चाहिए । आध्यात्मिक उपचार से रोग के शारारिक और मानसिक लक्षण कम होते हैं ।
उदा. किसी को आध्यात्मिक कारण से त्वचारोग हुआ होगा, तो उसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के उपाय करने पडेंगे । शारीरिक स्तर पर औषध, मरहम लगाना पडेगा; त्वचा रोग के कारण उदासीनता आई होगी, तो मानसिक उपचार करना पडेगा और उसके साथ-साथ मूल आध्यात्मिक कारण पर आवश्यक उपचार भी करना पडेगा । जब, व्यक्ति पर नकारात्मक स्पंदनों का प्रभाव बढता है, तब नकारात्मक शक्तियां उसे कष्ट देती हैं । इन नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव घटाने अथवा नष्ट करने के लिए किए जानेवाले प्रयत्नों को आध्यात्मिक उपाय कहते हैं ।
रोडा नमक, यह प्राकृतिक पदार्थ प्रभावी आध्यात्मिक उपाय है, यह श्रीमती कौर-मुंजाल ने बताया । एक बाल्टी में इतना पानी लें कि उसमें पैर रखने पर पिंडली तक का भाग डूब जाए । पश्चात उस पानी में 2 चम्मच रोडा नमक मिलाकर 15 मिनट तक पैर डुबाकर बैठे रहें । इससे शरीर के नकारात्मक स्पंदन निकल जाने में बहुत सहायता होती है । इस विषय में यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर नामक आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण की सहायता से शोध करने के लिए नकारात्मक स्पंदनों से पीडित एक व्यक्ति का नमक के पानी में पैर डुबाकर बैठने से पहले और 15 मिनट तक पैर डुबाने के पश्चात पाठ्यांक (रीडिंग) लिया गया । यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर उपकरण को प्रसिद्ध भूतपूर्व परमाणु वैज्ञानिक डॉ. मन्नम् मूर्ति ने विकसित किया है । इस उपकरणसे किसी भी वस्तु, वास्तु (भवन), प्राणी अथवा व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा और प्रभामंडल मापा जा सकता है । इस प्रयोग से पता चला कि जिस व्यक्ति ने 15 मिनट तक नमक के पानी में पैर डुबाकर रखा था, उसके शरीर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो गई है । इसी प्रकार, अन्य आध्यात्मिक उपायों के विषय में किए गए आध्यात्मिक शोध भी श्रीमती कौर-मुंजाल ने प्रस्तुत किए ।
अंत में श्रीमती कौर-मुंजाल ने कहा, नकारात्मक स्पंदनों के विषय में उपचार करने की अपेक्षा प्रतिबंध करना कभी भी अच्छा होता है । इसके लिए आध्यात्मिक दृष्टि से निरामय जीवन जीना बहुत महत्त्वपूर्ण है । अर्थात, हमारे आचार और विचार सात्त्विक होने चाहिए । सात्त्विकता बढाना और रज-तम घटाना ही प्रत्येक आध्यात्मिक उपाय का मूल सिद्धांत है ।
सुन्दर कुमार ( प्रधान सम्पादक )