सूर्य व्यायाम से बढ़ाएं आँखों की ज्योति
स्नान के पश्चात् किसी शुद्ध एकान्त स्थान में किसी बगीचे वा तालाब के किनारे पूर्व की ओर मुख करके किसी आसन में बैठ जाओ जिसमें आपको अच्छी तरह बैठने का अभ्यास हो । सूर्योदय से पहले श्रृद्धापूर्वक सन्ध्या वा ईश्वरभक्ति करो । जिस समय सूर्य उदय होने वाला हो, सन्ध्या समाप्त करके सूर्य की ओर मुख करके बैठे रहो । आंखें न खुली ही हों और न बन्द ही हों । पलकों को कुछ ढ़ीला रक्खो । आपकी आंखें कुछ प्रकाश अनुभव करें किन्तु देख न सकें ।
ऐसी अवस्था में आप एकाग्रचित्त होकर यह ध्यान करें कि उदय होते हुए सूर्य की किरणों के द्वारा मेरी आंखों में पवित्र प्रकाश और दिव्य ज्योति आ रही है । इस प्रकार ध्यान के अभ्यास से आपको चक्षुओं के अन्दर प्रकाश और ज्योति आती हुई अनुभव होगी । उसी समय यह भी ध्यान करें कि “मेरी आंखों की ज्योति खूब बढ़ रही है और चक्षु रोगरहित, पूर्ण स्वस्थ हैं ।”
इस प्रकार प्रतिदिन ध्यान करने से सब प्रकार के चक्षुरोग नष्ट होते हैं तथा आंखों की ज्योति बढ़ती है । किन्तु यह ध्यान रहे कि सूर्य को आंखें खोलकर इस समय देखना सर्वथा वर्जित और हानिकारक है । प्रतिदिन इस अभ्यास के पश्चात् अपने दोनों हाथों में एक पुस्तक लें और पुस्तक को उल्टा करके पकड़ लें । आंखें खोलकर पुस्तक को इस प्रकार से पढ़ें कि छपी हुई लाइनों के बीच जो कागज पर सफेद अन्तर रहता है उसको देखते चले जायें और इसी प्रकार सारे पृष्ठ को पढ़ डालें । अक्षरों को नहीं पढ़ना है । अक्षर पंक्तियों के मध्य में जो रिक्त स्थान कागज पर होता है उसी को देखना वा पढ़ना है ।
प्रतिदिन सूर्य व्यायाम के पश्चात् पुस्तक के पांच-सात पृष्ठ इसी प्रकार पढ़ डालें । इन दोनों क्रियाओं से आंखों को बड़ा ही लाभ पहुंचेगा । श्रद्धापूर्वक निरन्तर और दीर्घकाल तक दोनों अभ्यासों के करने से चश्मा उतर जाता है । नेत्रज्योति खूब बढ़ती है और वृद्धावस्था अर्थात् सौ वर्ष तक स्थिर रहती है ।
मीनाक्षी सिंह ( सहसंपादक )